धार्मिक व्यक्ति का पहला लक्षण है कि वह सीमाओं में नहीं साेचता. जाे असीम काे खाेजने चला है, वह सीमाओं में साेचेगा? िफर सीमाओं का काेई अंत है? भाषा की सीमाएं हैं; रंग की सीमाएं हैं; अलग-अलग आचरण, अलग-अलग माैसम-इनकी सीमाएं हैं. अलग-अलग परंपराएं, अलग-अलग धारणाएं जीवन की-इनकी सीमाएं हैं. कितने धर्म हैं पृथ्वी पर-तीन साै! और कितने देश हैं! और कितनी भाषाएं हैं-काेई तीन हजार! सीमाओं काे साेचने बैठाेगे ताे बड़ी मुश्किल में पड़ जाओगे.जाे साेचते हैं कि संस्कृत ही देववाणी है, उनके लिए बुद्ध-महावीर जागृत पुरुष नहीं हैं क्याेंकि वे संस्कृत में नहीं बाेले. संस्कृत शायद जानते भी नहीं थे. लाेक-भाषा में बाेले. जाे उस दिन जनता की भाषा थी, उसमें बाेले; पाली में बाेले, प्राकृत में बाेले. जाे साेचता है अरबी ही परमात्मा की भाषा है, उसके लिए कुरान के अतिरिक्त िफर काेई किताब परमात्मा की नहीं रह जाती.
या काेई साेचता है कि हिब्रू उसकी भाषा है, ताे बस बाइबिल पर बात समाप्त हाे गई.तुम क्याें इतनी छाेटी सीमाओं में साेचते हाे? यह भी अहंकार का ही विस्तार है. क्याेंकि तुम भारत में पैदा हुए, इसलिए भारत महान! तुम अगर चीन में पैदा हाेते ताे चीन महान हाेता. तुम्हें अगर बचपन में ही चुपचाप चीन में ले जाकर छाेड़ा गया हाेता और चीन में तुम बड़े हाेते, ताे तुम बुद्ध, महावीर, कृष्ण, नानक, कबीर, इनका नाम कभी न लेते; तुम लेते नाम-लाओत्सू, कनफ्यूशियस, च्वांगत्सू, लीहत्सू, जाे तुमने शायद अभी साेचे भी नहीं. या तुम्हें अगर यूनान में पाला गया हाेता, ताे तुम कहते-सुकरात, अरिस्टाेटल, प्लेटाे, हेराक्लाइटस, पाइथागाेरस कबीर की कहां गिनती हाेती! कबीर की तुम्हें याद भी नहीं आती.
कबीर का तुम्हें पता भी नहीं हाेता. यहां भी तुम अगर हिंदू घर में पैदा हुए हाे या जैन घर में पैदा हुए हाे, ताे एक बात; अगर मुसलमान घर में पैदा हुए हाे, ताे तुम साेचते हाे, इनमें से तुम एक भी नाम ले सकते! भारत-भूमि में ही अगर मुसलमान हाेते, ताे माेहम्मद, बहाऊद्दीन, बायजीद, अलहिल्लाज मंसूर, राबिया, ये नाम तुम्हें याद आते. ये र्सिफ हमारी सीमाएं हैं. इन सीमाओं काे तुम सत्य पर मत थाेपाे.तुम्हारा प्रश्न: इस भारत-भूमि पर.....काैन सी भारत-भूमि? कभी अफगानिस्तान भारत का हिस्सा था.अफगानिस्तान में बाैद्ध प्रतिमाएं मिली हैं, बाैद्ध विहाराें के अवशेष मिले हैं, अशाेक के शिलालेख मिले हैं. कभी भारत का हिस्सा था, अब ताे भारत का हिस्सा नहीं है. कभी बर्मा भारत का हिस्सा था, अब ताे भारत का हिस्सा नहीं है. और अभी-अभी हमारे सामने पाकिस्तान टूटा और भारत का हिस्सा नहीं रहा.
किस भूमि काे तुम भारत-भूमि कहते हाे? और जमीन क्या काेई पवित्र हाेती है, काेई अपवित्र हाेती है? जेरुसलम काशी से अपवित्र है? कि काबा गिरनार से? कि आल्प्स पर्वत के शिखर हिमालय के शिखराें से कम पवित्र हैं या कम सुंदर हैं या कम महिमावान हैं? मेरे संन्यासी हाेकर ऐसी भाषा छाेड़ाे. मेरा संन्यासी हाेने का अर्थ ही यही है कि हम असीम की तलाश पर चले हैं, अपने काे असीम करेंगे; अपने काे सारी सीमाओं से, सारी क्षुद्रताओं से मुक्त करेंगे. न काेई किताब हमें बांधेगी, न काेई देश हमें बांधेगा; न काेई चर्च, न काेई संप्रदाय हमें बांधेगा. हम सारे बंधन ही गिराएंगे.