सुख से असली वैराग्य पैदा हाेता है और दुख से नकली !

    12-Jan-2025
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Osho 
 
प्रश्न: कभी-कभी जीवन में दुख और पीड़ा का इतना अनुभव हाेता है, कि लगता है इससे ज्यादा दुख नरक में भी नहीं हाेगा. िफर भी जीवन के प्रति वैराग्य पैदा क्याें नहीं हाेता? दुख से कभी वैराग्य पैदा हाेता ही नहीं, सुख से पैदा हाेता है. दुखी की आशा ताे जिंदा रहती है; र्सिफ सुखी की आशा टूटती है. क्याेंकि दुख में ऐसा लगता ही रहता है, कि आज दुख है, कल ठीक हाे जाएगा. अभी दुख है, सदा थाेड़े ही रहेगा! और दुख में ऐसा भी लगता है, कि कुछ न कुछ रास्ता है इसके पार जाने का.गरीब कितना ही गरीब हाे, उसकाे लगता ही रहता है, अमीर हाेने का काेई न काेई उपाय है.आखिर दूसरे हाे गए हैं. इसलिए भिखमंगा कभी विरागी नहीं हाे सकता. बड़ा मुश्किल है. भिखमंगे की आशा लगी रहती है. जिसके पास है ही नहीं, वह छाेड़ेगा कैसे?
 
जिसके पास है, वही छाेड़ सकता है. सुख से असली वैराग्य पैदा हाेता है, दुख से नकली वैराग्य. इसलिए दुख से मैं तुम से कहता भी नहीं कि तुम दुख से वैराग्य की तरफ जाना; नहीं. वह काेई ठीक रास्ता नहीं है.अगर तुम दुख से वैराग्य की तरफ गए ताे तुम कभी माेक्ष के आकांक्षी न बनाेगे; ज्यादा से ज्यादा स्वर्ग के. क्याेंकि दुखी आदमी सुख मांगता है, आनंद नहीं. आनंद का उसे पता ही नहीं. सुख का ही पता नहीं, आनंद ताे बड़ी दूर की बात है. और दुखी आदमी काे जाे यहां नहीं मिला है, वह परलाेक में मांगता है. और दुखी आदमी काे जाे अपनी काेशिश से नहीं मिला है, वह परमात्मा से मांगता है. लेकिन दुखी आदमी विरागी नहीं हाे सकता. मैंने किसी दुखी आदमी काे कभी विरागी हाेते नहीं देखा.और अगर हाे जाए, ताे वह झूठा वैराग्य हाेगा.तुम्हअपने संन्यासियाें में, अगर तुम इस मुल्क में भ्रमण कराे ताे तुम्हें साै में से निन्यानबे प्रतिशत ऐसे संन्यासी मिलेंगे, जाे दुख के कारण संन्यासी हाे गए हैं.
 
दुख के कारण जाे संन्यास आता है, उस संन्यास में भी दुख की छाया पड़ी रहती है और सुख की आकांक्षा बनी रहती है. इसीलिए दुख से तुम मुक्त न हाे पाओगे और वैराग्य का काेई जन्म दुख से न हाेगा.सुख से वैराग्य का जन्म हाेता है.क्याें?क्याेंकि जब सुख मिल जाता है, तब भी तुम पाते हाे कि दुख ताे मिटा ही नहीं. सुख भी मिल गया और दुख ताे बरकरार है. जाे मिलना था, वह मिल गया; मिला ताे कुछ भी नहीं. भीतर ताे सब खाली है. धन मिल गया और भीतर की निर्धनता न मिटी. जैसी सुंदर पत्नी चाहिए थी मिल गई, लेकिन काेई तृप्ति न मिली. जैसा पति चाहिए था, मिल गया, लेकिन सब सपने टूट गए.काेई सपना पूरा न हुआ.दुखी आदमी ताे आशा कर सकता है, सुखी आदमी कैसे आशा करेगा? और आशा है राग. दुखी आदमी की ताे आशा बनी रहती है कि यह पत्नी मिल गई दुष्ट. दुनिया में इतनी स्त्रियां हैं, एक अभागे हम इससे उलझ गए! काेई दूसरी स्त्री मिल जाती.