अतीत और भविष्य सिर्फ हमारी कल्पनाएं हैं

    05-Feb-2025
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Osho 
 
अतीत काे देखाे और उसके साथ अपना तादात्म्य हटा लाे, सिर्फ गवाह हाे जाओ. तब भविष्य काे देखाे, भविष्य के बारे में तुम्हारी जाे कल्पना है, उसे देखाे और उसके भी द्रष्टा बन जाओ. तब तुम अपने वर्तमान काे आसानी से देख सकाेगे, क्याेंकि तब तुम जानते हाे कि जाे अभी वर्तमान है, कल भविष्य था और कल फिर वह अतीत हाे जाएगा. लेकिन तुम्हारा साक्षी न कभी अतीत है न कभी भविष्य, तुम्हारी साक्षी चेतना शाश्वत है. साक्षी चेतना समय का अंग नहीं है. और यही कारण है कि जाे भी समय में घटित हाेता है वह स्वप्न बन जाता है.यह भी याद रखाे कि जब रात में तुम सपने देखते हाे ताे सपने के साथ एकात्म हाे जाते हाे, स्वप्न में तुम्हें यह स्मरण बिलकुल नहीं रहता कि यह स्वप्न है. सिर्फ सुबह जब तुम नींद से जागते हाे ताे तुम्हें याद आता है कि वह सपना था, यथार्थ नहीं. क्याें? इसलिए कि अब तुम उससे अलग हाे, उसमें नहीं हाे; अब एक अंतराल है. और अब तुम देख सकते हाे कि यह स्वप्न था.
 
तुम्हारा समूचा अतीत क्या है? जाे अंतराल है, जाे अवकाश है, उससे देखाे कि वह सपना है. अतीत अब सपना ही है, सपने के सिवाय कुछ भी नहीं है. क्याेंकि जैसे स्वप्न स्मृति बन जाता है वैसे ही अतीत भी स्मृति बन जाता है. तुम सचमुच सिद्ध नहीं कर सकते कि जाे भी तुम अपने बचपन के रूप में साेचते हाे, वह यथार्थ था या सपना. यह सिद्ध करना कठिन है. हाे सकता हवह सपना ही रहा हाे; हाे सकता है वह सच ही हाे.स्मृति नहीं कह सकती है कि वह स्वप्न था या सत्य.मनाेवैज्ञानिक कहते हैं कि बूढ़े लाेग अक्सर अपने स्वप्न और यथार्थ में भेद नहीं कर पाते हैं. और बच्चाें काे ताे हमेशा यह उलझन पकड़ती है, सुबह नींद से जागकर उन्हें यह उलझन हाेती है. रात उन्हाेंने स्वप्न में जाे देखा था वह सत्य नहीं था, लेकिन सुबह जागकर वे सपने में टूट गए खिलाैने के लिए जाेरजाेर से राेते हैं.
 
और तुम भी ताे नींद के टूटने के बाद थाेड़ी देर तक अपने स्वप्नाें से प्रभावित रहते हाे. अगर स्वप्न में काेई तुम्हारा खून कर रहा था ताे जागने के बाद भी तुम्हारी छाती धड़कती रहती है, तुम्हारे रक्त का संचालन तेज बना रहता है, तुम्हारा पसीना बहता रहता है और एक सूक्ष्म भय अब भी तुम्हें घेरे रहता है. अब तुम जाग गए हाे और स्वप्न बीत गया है, ताे भी यह समझने में तुम्हें समय लगता है कि सपना सपना ही था. और जब तुम समझ लेते हाे कि सपना सपना था तभी तुम उसके बाहर हाेते हाे, और तब भय नहीं रह जाता.
वैसे ही तुम देख सकते हाे कि तुम्हारा अतीत भी एक स्वप्न था. तुम्हारा अतीत स्वप्न था, इसे आराेपित नहीं करना है, इसे जबर्दस्ती अपने पर लादना नहीं है.
 
यह ताे अंतर्दृष्टि का परिणाम है. यदि तुम अपने अतीत काे देख सकाे, उससे एकात्म हुए बिना उसे देख सकाे, उससे अलग हाेकर उसे देख सकाे, ताे अतीत स्वप्न हाे जाता है. जिसे भी तुम साक्षी की तरह देखते हाे वह स्वप्न हाे जाता.यही वजह है कि शंकर और नागार्जुन कह सके कि संसार स्वप्न है. ऐसा नहीं है कि यह स्वप्न है.वे इतने मूढ़ नहीं थे कि यह संसार उन्हें दिखाई नहीं पड़ता था. इसे स्वप्न कहने में उनका यही अभिप्राय था कि वे साक्षी हाे गए हैं, इस यथार्थ जगत के प्रति वे साक्षी हाे गए हैं. और जब तुम किसी चीज के साक्षी हाे जाते हाे ताे वह स्वप्न बन जाती है. इसी वजह से व जगत काे माया कहते हैं. यह नहीं कि वह यथार्थ नहीं है, उसका इतना ही अर्थ है कि काेई इस जगत का भी साक्षी हाे सकता है. और एक बार तुम साक्षी हाे जाओ, पूरे बाेधपूर्ण हाे जाओ ताे पूरी चीज तुम्हारे लिए स्वप्नवत हाे जाती है. क्याेंकि वह ताे है, लेकिन अब तुम उससे एकात्म