जीबीएस संक्रमण पक्षियों के आंतों में मौजूद बैक्टीरिया से होने की आशंका !

सिंहगढ़ रोड क्षेत्र में पक्षियों की विष्ठा के नमूने जांच के लिए एनआईवी को भेजे गए ः स्वास्थ्य विभाग

    05-Feb-2025
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पुणे, 4 फरवरी (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
 
 जीबीएस (गुइलेन-बैरे सिंड्रोम) के प्रकोप के पीछे का कारण अभी भी रहस्य बना हुआ है. चिकित्सा विशेषज्ञों ने दूषित पानी और भोजन को इसका प्रमुख कारण बताया है. हालांकि राज्य के स्वास्थ्य विभाग के उपसंचालक डॉ. राधाकृष्ण पवार ने दावा किया है कि जीबीएस फैलाने वाला बैक्टीरिया पक्षियों की आंतों से आता है. इस आशंका के चलते पशुपालन विभाग के माध्यम से सिंहगढ़ रोड क्षेत्र में पक्षियों की विष्ठा (मल) के नमूने एकत्र कर एनआईवी (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी) को भेजे गए हैं. पुणे शहर में जीबीएस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है और अब तक तीन लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है. सिंहगढ़ रोड क्षेत्र में राजाराम पुल से नांदोशी तक 13 जनवरी के बाद से अधिकतर मरीज पाए गए हैं. चिकित्सा विशेषज्ञों ने दूषित पानी और भोजन को इसके संक्रमण का मुख्य कारण बताया था, जिसके बाद मनपा और स्वास्थ्य विभाग ने इस क्षेत्र में जल आपूर्ति प्रणाली और ड्रेनेज व्यवस्था की जांच की. साथ ही, करीब 30,000 घरों का सर्वेक्षण किया गया है. इसके अलावा, नागरिकों को उबला हुआ पानी पीने की सलाह दी गई और पीने के पानी के सभी स्रोतों को कीटाणुरहित करने पर जोर दिया गया. इसके बावजूद हर दिन नए मरीज सामने आ रहे हैं. जिससे चिंता बढ़ गई है. एनआईवी को भेजे गए नमूनों में से अब तक केवल 27 मरीजों में कैंपिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया पाया गया है. इसलिए, पुणे में जीबीएस संक्रमण का मूल कारण ढूंढना स्वास्थ्य विभाग के लिए एक चुनौती बन गया है. यही कारण है कि पानी के नमूनों के अलावा अब खड़कवासला क्षेत्र से पक्षियों की विष्ठा और मिट्टी के नमूने भी एकत्र कर एनआईवी को भेजे गए है. जल्द ही पुणे को मिलेगी जीबीएस से राहत स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, पुणे में जीबीएस संक्रमण का सबसे अधिक प्रभाव 17-18 जनवरी को देखा गया. इन दो दिनों में जीबीएस के कुल 14 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद से संक्रमण के मामलों में गिरावट देखी जा रही है. स्वास्थ्य उपसंचालक डॉ. राधाकृष्ण पवार ने कहा कि संक्रमण दर घट रही है और पुणे जल्द ही इस समस्या से मुक्त हो जाएगा.
 
 
जीबीएस का कारण दूषित पानी या पक्षियों की विष्ठा?
 
राज्य के स्वास्थ्य उपसंचालक डॉ. राधाकृष्ण पवार ने मीडिया से बात करते हुए एक नई जानकारी साझा की. उन्होंने बताया कि हालांकि पुणे में जीबीएस का केंद्र नांदेड़क्षेत्र के जल आपूर्ति कुएं के एक किलोमीटर के दायरे में दिखाई दे रहा है. लेकिन अब तक लिए गए किसी भी जल नमूने में कैंपिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया नहीं पाया गया है. इसका मतलब यह हुआ कि जीबीएस का फैलाव पानी से नहीं हुआ है. अब, स्वास्थ्य विभाग ने पशुपालन विभाग के माध्यम से खडकवासला बांध क्षेत्र में पक्षियों के मल (विष्ठा) के नमूने एकत्र किए और उन्हें एनआईवी भेजा है. जीबीएस फैलाने वाला बैक्टीरिया पक्षियों की आंतों में पाया जाता है, इसलिए इन नमूनों की जांच रिपोर्ट महत्वपूर्ण होगी