आधि राशि ताे कर्ज का ब्याज देने में ही चली जाती है!

    05-Feb-2025
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बात ताे चुभेगी
 
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बजट पेश करते समय किसी भी वित्त मंत्री के सामने बड़ी चुनाैती दरअसल आर्थिक विकास के विभिन्न और विराेधी उत्प्रेरकाें के बीच संतुलन बिठाने की तथा वंचित वर्गाें के लिए सब्सिडी की व्यवस्था करते हुए भी आर्थिक अनुशासन बनाये रखने की हाेती है. संतुलन बनाये रखने की इस तनी हुई रस्सी पर चलना अक्सर मुश्किल हाेता है, वैश्विक उथल-पुथल के बीच ताे यह और ज्यादा कठिन हाेता है.अमेरिकी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मैक्सिकाे और चीन के आयाताें पर शुल्क थाेप दिये हैं. ऐसे में, चीन अपना माल भारत जैसे देशाें में डंप करने की काेशिश करेगा. डाेनाल्ड ट्रंप की नीतियाें से वैश्विक स्तर पर घबराहट पैदा हाे रही है. इससे न्यूयाॅर्क के सुरक्षित बांड बाजार तक वैश्विक पूंजी की दाैड़ शुरू हाेगी.
 
ऐसे में, डाॅलर की न सिर्फ मांग बढ़ेगी, बल्कि यह निरंतर मजबूत भी हाेता जायेगा. यह परिदृश्य भारत के लिए ठीक नहीं हाेगा.कमजाेर हाेते रुपये और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में आयी कमी से भारत वैसे भी प्रतिकूल स्थिति का सामना कर रहा है.इस पृष्ठभूमि में वित्त मंत्री ने लगातार अपने आठवें बजट में 51 ट्रिलियन रुपये खर्च करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें राजस्व के रूप में 35 ट्रिलियन रुपये हासिल करने की उम्मीद है. खर्च और प्राप्ति के बीच की खाई काे कर्ज लेकर पाटा जायेगा.भले ही बजट का सबसे बड़ा आकर्षण व्य्नितगत आयकर में बड़ी कटाैती रही हाे, लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें वित्तीय अनुशासन काे भूला नहीं गया. अगले वित्त वर्ष में राजकाेषीय घाटा जीडीपी का 4.5 प्रतिशत रहने वाला हजाे कुछ साल पहले किये गये वादे के अनुरूप है.
 
औसतन सात फीसदी की आर्थिक विकास दर बरकरार रखते हुए और पिछले कुछ वर्षाें से पूंजीगत खर्च में भारी वृद्धि करने के बावजूद वित्तीय अनुशासन के माेर्चे पर हासिल की जाने वाली यह उपलब्धि बड़ी है. भूलना नहीं चाहिए कि टैक्स छूट के कारण राजस्व में लगभग एक ट्रिलियन रुपये की कमी हाेने के बावजूद सरकार राजकाेषीय घाटे काे लक्ष्य के अनुरूप रख पायेगी.हालांकि यह भी तथ्य है कि वित्तीय अनुशासन बनाये रखने के लिए सरकार ने इस बजट में पूंजीगत खर्च काे नहीं बढ़ाया और उसे पिछले बजट के बराबर ही रखा.अब 12.75 लाख रुपये तक की सालाना आय पर आयकर नहीं देना पड़ेगा. जबकि 2019 में सात लाख रुपये तक की सालाना आय आयकर मु्नत थी. आयकर में यह कटाैती मुख्य रूप से मध्यवर्ग काे खुश करने के लिए है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री के अलावा राष्ट्रपति ने भी अपने संबाेधन में किया.
 
इतनी भारी टैक्स छूट देने से लाखालाेग टैक्स के दायरे से बाहर हाे जायेंगे, जाे करदाताओं का दायरा बढ़ाने की नीति के खिलाफ जाता है. आठ कराेड़ भारतीय आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं, लेकिन इनमें से मात्र 2.5 कराेड़ लाेग ही आयकर चुकाते हैं.बेशक खासकर शहरी इलाकाें में उपभाेग खर्च में आयी कमी काे देखते हुए आयकर में यह कटाैती जरूरी थी.मध्यवर्ग की शिकायत यह भी थी कि ऊंची मुद्रास्फीति का असर उसकी क्रयश्नित पर पड़ रहा है. टैक्स कटाैती के बावजूद वित्त मंत्री काे उम्मीद है कि कुल टैक्स संग्रह नाॅमिनल जीडीपी से, जिसके 10.5 फीसदी हाेने की उम्मीद है, अधिक रहेगा. वैश्विक सुस्ती व उथल-पुथल तथा अपनी आर्थिक समीक्षा के कठाेर आकलन काे देखते हुए वित्त मंत्री का यह अनुमान देखने लायक है.भारत वित्तीय माेर्चे पर व्याप्त अनिश्चय की अनदेखी नहीं कर सकता.
 
केंद्र सरकार टैक्स के रूप में जाे राजस्व हासिल करती है, उसका 49 प्रतिशत लिये गये कर्ज का ब्याज चुकाने में ही खर्च हाजाता है. सरकार द्वारा लिये जाने वाले कर्ज से, जिसके इस साल 15 ट्रिलियन रुपये हाेने का अनुमान है, ब्याज दर पर ताे दबाव रहेगा ही, इससे निजी निवेश भी दूर भागेगा. अलबत्ता अगले साल राजकाेषीय घाटा कम रहने, मुद्रास्फीति के घटने और बैंकाें में पर्याप्त नकदी डाले जाने से रिजर्व बैंक माैद्रिक नीति समिति की अपनी अगली बैठक में ब्याज दर कम करने के बारे में साेच सकता है. बजट की एक अन्य उल्लेखनीय बात विनियमन के क्षेत्र में सरलीकरण की काेशिश है.आर्थिक समीक्षा में भी यह बात कही गयी है कि सरकार काे तटस्थ रवैया अपनाना चाहिए और इंस्पेक्टर राज लागू करने के बजाय काराेबार काे उद्यमियाें पर छाेड़ देना चाहिए.
 
आर्थिक समीक्षा में भराेसे पर आधारित विनियामक व्यवस्था की बात कही गयी है. हालांकि इस संदर्भ में कमेटी के गठन के बाद ही पता चल पायेगा कि इस पर कितना अमल हुआ है.वित्त मंत्री ने बजट में शुल्क की सात दरें खत्म करने की घाेषणा की. उन्हाेंने नये आयकर कानून की भी घाेषणा की, जाे कर प्रशासन काे आधुनिक रूप देने और मुकदमाें काे घटाने के बारे में बताती है.बजट में कृषि, पर्यटन, नागरिक उड्डयन, स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्राें पर जरूरी पहल की गयी है. बजट में फुटवियर, खिलाैने तथा कृषि प्रसंस्करण जैसे अधिक श्रम वाले क्षेत्राें काे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता भी महसूस की गयी. हालांकि आने वाले वर्षाें में इन क्षेत्राें में कितना निवेश आयेगा, यह देखने वाली बात हाेगी.
-अजित रानडे, अर्थशास्त्री