मंदबुद्धि बच्चों को होने वाली समस्याएं

    16-Apr-2020
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मेहमानों के साथ-साथ उनका एक बच्चा भी हमारे घर पर आया. मेहमानों ने उस बच्चे की बहुत तारीफ की. जब उन्हें चाय दी गई तो वे बोले - नहीं, ये बच्चा चाय नहीं पीता.फफ तभी बच्चा जिद्द कर बैठा नहीं  तो चाय पीऊंगा. उसे चाय दी गई. उसने बहुत जल्दी चाय पी ली. फिर चाय और मांगने लगा. यह देख उन मेहमानों का शर्म से सिर झुक गया. विश्वास नहीं होता इतना बडा बच्चा और इतनी मंदबुद्धि? ऐसा कई बच्चों के साथ होता है. शारीरिक विकास के साथ-साथ उनका मानसिक विकास नहीं हो पाता ऐसे बच्चे समाज में, स्कूल में चिंता के पात्र बन जाते हैं.
 
पर्याप्त  सुविधाओं के बाद भी उनका मानसिक-स्तर उम्र के समानान्तर नहीं आ पाता. ऐसे बच्चे सुस्त-उदास से दिखलाई देते हैं.. ये किसी बात को या तो तनिक भी नहीं समझ पाते या देर से समझते हैं. इससे शिक्षक तथा अभिभावक भी असंतुष्ट बने रहते हैं.. बहुत से अभिभावकों को यह विश्वास ही नहीं होता कि उनका बच्चा मंदबुद्धि है. वे सामान्य बुद्धि के बालकों से उन बच्चों की होड करते हैं. उनसे अधिक काम लेते हैं. अधिक अनुशासित रखते हैं.
 
जबकि ऐसा करना मंदबुद्धि बालकों के साथ अन्याय होता है. मंदबुद्धि किन्हीं शारीरिक-मानसिक रोग के कारण हो सकती है. ऐसे बच्चे उम्र तथा सामान्य स्तर के काङ्र्म करने में असमर्थ होते हैं. ऐसे बालकों में हीन- भावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं. मंदबुद्धि के बालकों की अपेक्षा मूर्ख बालकों का मानसिक स्तर शीघ्र सुधारा जा सकता है. मूर्खता बुद्धिहीनता नहीं होती. उन्हें उचित मार्गदर्शन की तलाश होती है. उनकी ऊर्जा दिशा तलाशती है. क्योकी  उनकी मूर्खतापूर्ण गतिविधियों में चंचलता, चुहलता, चतुरता का समावेश होता है. जबकि मंदबुद्धि के बालक सामान्य बालकों के बीच समायोजन नहीं कर पाते. वे प्रसन्न भी नहीं रहते तथा एकाकी रहना पसंद करते हैं.. बालकों के मंदबुद्धि होने के पीछे कई कारण हो सकते है. जैसे उनमें किसी शारीरिक दोष, कमी या विकलांगता का होना. इससे यह आशय नहीं है कि जो बालक शारीरिक दोष से ग्रसित है. वह अवश्य मंदबुद्धि होगा. परन्तु सामान्यतः मंदबुद्धि बालकों में शारीरिक दोष पाए जाते हैं.
 
ऐसे बच्चों में सीखने की मंदगति होती हैं.. सीखकर भी विस्मृत होने की संभावना बनी रहती है. इनकी रुचियां भी सीमित होती हैं.. ऐसे बच्चे कल्पनाशील नहीं होते. अमूर्त-चिंतन नहीं कर पाते. स्वतंत्र रूप से कोई काम नहीं कर पाते. उनमें मौलिकता का भी अभाव पाया जाता है. वातावरण से समायोजन नहीं कर पाने के कारण उनमें निराशा घर कर जाती है. ऐसे बच्चे सुझावों पर शीघ्र अमल करते हैं., दूसरों के कहने पर काम  कर बैठते हैं. अच्छे-बुरे का भेद वे नहीं कर पाते. इस तरह के मंदबुद्धि बालक कक्षा- शिक्षण का भी लाभ नहीं उठा पाते तथा सहानुभूति के पात्र बनकर रह जाते हैं. मंदबुद्धि बालकों हेतु प्रयु्नत की गई शिक्षण-पद्धति सरल-सरस व रोचक होनी चाहिए. ऐसे बालकों को भ्रमण हेतु ले जाना, उन्हें उन्मु्नत वातावरण देना तथा उन्हें समुचित सम्मान, महत्व और अवसर देना, अति आवश्यक हो जाता है. उन्हें सांस्कृतिक गतिविधियों से जोडना तथा उनकी रूचि के अनुरूप उन्हें दिशा प्रदान करना भी जरूरी हो जाता है. ये वे सोपान हैं. जिनके माध्यम से हम मंदबुद्धि बालकों को सामान्य बालकों की श्रेणी में ला सकते हैं..