मैं किसी से डरता नहीं हूं. हमें क्यों यहां से भागना चाहिए. यहीं जीऊंगा......यहीं मरूंगा.....! यह कहा था अन्य पंडिताने. कश्मीर का यह बहादुर बेटा अब जीवित नहीं हैं. अनंतनता के पुरुलकबावन नामक गांव के निवासी. यहीं के जवान सरपंच अजय ने पिछले साल ही बीजेपी के उम्मीदवार को हराकर चुनाव जीता था. उनके पिता द्वारकानाथ पंडित रिटायड शिक्षक हैं. वे ३० साल पहले अपनी व अपने परिवार की जान आतंकवादियों से बचाने जम्मू भाग गये थे. बेटा जवान हुआ तो बोला कि चाळीस गांव लौट चले. परिवार के मना करने...... रोकने पर अजय ने कहा- सेना के जवान जब अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं, तो हम क्यों यहां से भागें. अजय देशभ्नत था. वह मातृभूमि से प्यार करता था. उसकी हर बात में भारत माता के प्रति प्रेम झलकता था. वह सरपंच बनकर गांव की किस्मत बदल देना चाहता था. तभी तो वह आतंकवादियों व दुश्मनों की आंखों का कांटा बन चुका था. सोमवार की शाम एक व्यक्ति आया बोला उसे उनका (अजय पंडित का) हस्ताक्षर चाहिए. अजय बाहर आए...... कुछ कदम वे चले थे कि पीछे से किसी ने सिर पर गोली मार दी....... अजय वहीं पडे...... और एक देशभक्त......अपने देश की मिट्टी में बलिदान हो गया. लेकिन अजय की मौत एक आम व्यक्ति की मौत नहीं हैं, इसे जम्मू कश्मीर ही नहीं पूरा देश भूला नहीं पाएंगा!
द्वारकानाथ पंडित का परिवार बार-बार उजडा है. सन् १९८६ मैं हुई भीषण हिंसा के बाद द्वारकानाथ परिवार सहित जम्मू आ गया. उनके घर को तोड-फोड दिया गया था. सन् १९९२ में कश्मीर लौटे....... मेहनत की, बँक से लोन लेकर घर का पुनर्निर्माण पंडित ने कराया लेकिन शेष पंडित परिवार जम्मू में ही रहा. अजय चुनाव जीतकर सरपंच बन गए. और फिर उनकी हत्या कर दी गई. द्वारका भरी हुई आंखों से कहते है- मेरा बेटा मरा नहीं है, मातृभूमि के लिए शहीद हुआ है. अब मैं उसके सपनों को पूरा करुंगा.
इस दौरान अभिनेत्री कंगना रणावत ने कोई अभियान शुरू किया है. शहीद अजय पंडिता के समर्थन में जारी इस अभियान को कंगना उनके प्रशंसकों की टीम ने जारी करते हुए तथाकथित काड, एवाड विनर व बुद्धजीविनों के पिछले अभियानों की याद दिलाने हुए इन तथाकथित लोगों को ही चुनौती दी है कि वे कश्मीर पंडितों के समर्थन में मौन क्यों हैं? करीब ३० वर्षों से लाखों कश्मीरी पंडित अपने ही देश में विस्थापित की तरह रहने पर मजबूर हैं. धारा ३७० व धारा ३५ए हटने के बाद भी उनके पुनर्वसन हेतु कोई ऐसी पॅकेज योजना नहीं बनाई गई है. कंगना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि अजय पंडित के हत्यारों पर कारवाई की जाएं. कश्मीर ३ लाख कश्मीरी पंडित परिवार आतंकवाद के चलते भागकर पूरे देश में फैल गए हैं. उनका इंतजार अभी भी समाप्त नहीं हुआ है. मोदी-शाह पर नजरें जमी हुई है. कब वे उन्हें कश्मीर घाटी में सन्मान के साथ बसायेंगे! अजय व अन्य ऐसे लाखों लोगों का यही एक सवाल है कि वे अपने घर लौट जाएं.
कश्मीरी पंडितों के साथ सन् १९८०- ९० के दशक में आतंकवादियों ने जो किया बर्बरता घरों में घुसकर घरों पर कब्जा कराया. बहू बेटियों से पूरे परिवार के सामने बलात्कार कराया. युवाओं को गोली मार दि गई. लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने आतंकवादियों को खुली छूट दे रखी थी. असहाय......लाचार कश्मीरी पंडितों के पास पलायन के सिवा कोई विकल्प नहीं था. ३० से ज्यादा सालों तक घाटी पर आतंकियों का राज रहा. अटल बिहारी वाजपेयी भी कश्मीर पंडितों के लिए कुछ नहीं कर पाए. अब जाकर मोदी-सरकार ने धारा ३७० हटाई तो नई उम्मीद पैदा हुई, लेकिन इस हत्या ने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवादी कश्मीर घाटी में फिर से आतंक का राज स्थापित करना चाहते हैं. मोदी-शाह को तुरंत ऐसा ए्नशन लेना चाहिए, जिससे वहां कश्मीरी पंडितों और अन्य निर्दोषों को शांति सुरक्षा व विकास की शांती मिले. इसके बिना जम्मू कश्मीर में धारा ३७० व ३५ अ को हटाने का कोई अर्थ नहीं होगा.
पीपल प्लॅनेट व पाकिट इन तीनों का अंतर से संबंध. इंटरलिंक जोडा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडियन चैबर्स ऑफ कॉमर्स या, एक वार्षिक अधिवेशन में इसे टर्निंग पाईंट बताते हुए आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को दोहराया उन्होंने बल्ब का उदाहरण देते हुए कहा कि इससे १९ हजार करोड रुपए की हरसाल बचत हो रही है, अब यह बल्ब ३५० जमात की जगह ५० रुपऐ में मिल रहा है, इससे ४ करोड टन कार्बन-उत्सर्जन भी कम हुआ है.
इसका अर्थ है कि इन ६ सालों में देश की १.१४ लाख करोड रुपए की बचत हुई है. प्रधानमंत्री बताते है कि इससे इतनी बचत हुई इस बचत का क्या हुआ यह बताया नहीं जाता! जैसे इससे हुई बचत १.१४ लाख करोड जन धन से क्या हुई रकम १.०८ लाख करोड रुपए और फुड ऑइल या कच्चे तेल के मद में सन २०११ के हिसाब से बचत करीब ४ लाख करोड रुपए सालाना, ऐसे कई तरह की बचतें हुई है, जिसमें एक से जुडी राशियां और कोयला बदानों की फिर से निलामी से मिले पैसे हैं, साथ ही रिजर्व बैंक के कॅश-फंड से ली गई सारी है. यह सब मिलकर अवारा धन साक्षी सरकार ने एकत्र की है मगर उसका निवेश कहां किया गया? प्रवासी मजदूर मामलें में जब जरूरत थी तब क्यों जनता तक इस रकम को नहीं पहुंचाया गया? इसके बाद भी सरकार आर्थिक संकट की बात करती है, वैसे यह एहसास अब होने लगा है कि केंद्र सरकार से व्हाइट पेपर या श्वेत पत्र निकालने की विपक्ष की मांग सही है.
देश को आत्मनिर्भरता एलइडी कल्ब से ही आत्मनिर्भर नहीं बनाया जा सकता. पीएम के अनुसार मेडिकल, डिफेंस, कोल मिनरल, फटिलाइजर, इलेक्ट्रॉनिक, मैन्युफैक्चरिंग, सोलर पैनल, चिप व एविएशन से्नटर में हम आत्मनिर्भर नहीं हैं. अमेरिका अगॅनिक खेती के मामले में आत्मनिर्भर है, हम नहीं है. ऐसा क्यों है. क्योंकि हम दवाओं के लिए ही चीन से भारी मात्रा मैं या ६५% कच्चा माल खरीदते हैं. पिछले वित्त वर्ष २०१९-२० में करीब २७ हजार करोड रुपए मद खर्च हुए ऐसे क्षेत्र है, यही कारण है कि हम प्रचंड व्यापार घाटे में है. इस साल तो ११% तक राजस्व घाटा हो सकता है. कैसे इसे भरेंगे? आत्मनिर्भर भारत क्या सिर्फ माल से बनेगा? नहीं आत्मनिर्भर भारत तो तब है जब कश्मीरी पंडित अपने घरों में लौटे, बसे और सुख-शांति से रहें. आत्मनिर्भर भारत तो तब बनेगा जब किसी को अपने गांव -घर से रोटी-रोजगार के लिए पलायन न करना पडे. जब शिक्षा और रोजगार दोनों साथ-साथ चले और बेरोजगारी व गरीबी यहां से भाग जाएं. अभी तो आत्मनिर्भरता सिर्फ एक सपना है.
- आर.के.श्री. मानवेंद्र