प्रकृति और विकास परस्पर पूरक बनाने से ही शाश्वत जीवन संभव : डाॅ. अंकुर पटवर्धन

05 Jun 2021 13:10:22
 
हरियाली काे बचाने तथा बढ़ाने में आम आदमी भी महत्वपूर्ण याेगदान दे सकता है
 

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‘‘धूप में चलते समय थकान से चूर हाेने के बाद जब हमें अचानक छायादार पेड़ दिखाई देता है और उस छांव में हम पहुंचते हैं ताे बड़ी राहत मिलती है. क्या हम उस छाया की कीमत पूछते हैं? हम यह नहीं कह सकते कि इस छांव की कीमत 100 छतरियाें के बराबर है.कुछ चीजाें का मूल्य कम नहीं हाेता. यदि समय रहते इसका महत्व न जान सके ताे मनुष्य काे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है ; इसलिए तेजी से खत्म हाेती जा रही जैव विविधता (Biodiversity) की रक्षा का प्रण नई पीढ़ी काे लेना चाहिए.’’ यह अपील वरिष्ठ जैव विविधता विशेषज्ञ तथा केंद्र सरकार के महाबलेश्वरपंचगनी ‘इकाे-सेंसिटिव जाेन’ की उच्चस्तरीय समिति के अध्यक्ष डाॅ. अंकुर पटवर्धन ने की.
 
आज (5 जून) विश्व पर्यावरण दिवस है. इस अवसर पर हमारे प्रतिनिधि ने डाॅ. पटवर्धन से जैव विविधता के बारे में खास बातचीत की. इसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं- जैव विविधता के बारे में बाेलते हुए डाॅ. पटवर्धन ने कहा, जब हम ‘पर्यावरण संरक्षण’ कहते हैं, तब आम ताैर पर मन में वायु-जल-ध्वनि प्रदूषण का विचार आता है. परिसर की जैव विविधता के संरक्षण पर अभी भी अधिक ध्यान नहीं दिया जाता. जैव विविधता पर्यावरण का अभिन्न अंग तथा मानव जीवन का आधार है. जैव विविधता में सूक्ष्मजीवाें से लेकर कीड़े, चींटियाें, कीट, प्राणी, पक्षी, सभी प्रकार की वनस्पति आदि सभी सजीव सृष्टि का जैव विविधता में समावेश हाेता है.
काेई भी जैव विविधता काे लाभ-हानि की तालिका में डालकर मूल्यांकन नहीं कर सकता. वन का मूल्य र्सिफ वहां मिलने वाले औषधीय वनस्पतियाें, शहद, रबर और लाख (लाह या lacquor) के उत्पादन तक ही सीमित नहीं रहता.
 

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जंगल के कारण वहां की जमीन का कटाव (भू-क्षरण याSoil erosion) रुक जाता है, मिट्टी की बनावट में सुधार हाेता है, खाद्य सुरक्षा में वृद्धि हाेती है और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (इकाे-सिस्टम) की रक्षा हाेती है. हाल ही में इसका अध्ययन ‘वन के आर्थिक मूल्यांकन’ (ईवैल्युएशन ऑफ फॉरेस्ट) के रूप में हाेने लगा है. पिछले कुछ वर्षाें में ऑस्ट्रेलिया या अमेजन में जाे आग लगने की घटनाएं हुई हैं, उससे अब थाेड़ा-बहुत जैव विविधता की रक्षा करने का महत्व समझ में आने लगा है. यदि प्राकृतिक वन जीवित रहेंगे तभी हवा में व्याप्त कार्बन अवशाेषित हाेगा. इसलिए जरूरी है कि जाे जंगल बचे हैं उनका अस्तित्व बनाये रखना जरूरी है.
 
पूर्ण रूप से वृक्षाराेपण यानी पर्यावरण की रक्षा नहीं!
 
पहाड़ियाें पर सैर के लिए जाने वाले उत्साही प्रकृति प्रेमी वहां पूर्ण रूप से या हर जगह पाैधे लगाते हैं. प्रत्येक स्थान का अपना पारिस्थितिकी तंत्र (इकाे-सिस्टम) हाेता है. उचित अध्ययन के बिना किसी काे भी प्रकृति में गलत हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. र्सिफ ‘लक्ष्य’ या ‘टार्गेट’ हासिल करने के लिए हजाराें पेड़ लगाने की जरूरत नहीं है. वृक्षाराेपण सावधानी से किया जाना चाहिए. डाॅ. पटवर्धन ने सुझाव दिया कि वार्ड स्तरीय समिति का गठन करके उसमें विशेषज्ञाें की नियुक्ति कर यह मार्गदर्शन हासिल किया जा सकता है कि किसी विशिष्ट क्षेत्र में काैन-से पेड़ लगाए जाएं? कुछ विदेशी पेड़ हमारी जलवायु के अनुकूल हाे गए हैं.
स्थानीय पक्षी अब उन पेड़ाें पर घाेंसले बनाते हैं.
 

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वृक्षाराेपण कार्यक्रम में विदेशी पेड़ लगाए जाते हैं क्याेंकि वे पाैधे आसानी से उपलब्ध हाेते हैं और जल्दी से हरियाली छा जाती है.अगर हम बरगद, पीपल, गूलर, पलाश (ढाक) व अमलतास जैसे देसी पेड़ लगाते हैं, ताे उन्हें उगने और बड़े हाेने में कई साल लग जाते हैं. इसके अलावा इन पाैधाें की उपलब्धता एक बड़ा मसला है. ऐसे समय में आम आदमी अच्छी मदद कर सकता है. डाॅ. पटवर्धन ने अपील की कि ऊपर के पेड़ाें और उनके साथ जामुन व बेर जैसे फल खाकर उनके बीज कूड़े में न डालकर घर के गमले में लगाएं. उनके पाैधे तैयार हाेने के बाद अपने नजदीकी उद्यान समूह (गार्डन ग्रुप) व पहाड़ी समूह काे दिया जा सकता है, ताकि याेजनाबद्ध ढंग से वृक्षाराेपण किया जा सके.
 
प्रकृति या विकास?
 
डाॅ. पटवर्धन ने कहा, ‘प्रकृति और विकास’ ये दाे बातें हमेशा विराेधाभासी नहीं हाेती हैं. वे एक-दूसरे कीपूरक हाे सकती हैं. हाथ में हाथ डालकर इन्हें किया जा सकता है.उदाहरण के ताैर पर काेंकण का क्षेत्र ही लीजिए. काेंकण में प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं और वहां फल प्रक्रिया, मछली प्रसंस्करण उद्याेग और औषधीय पाैधाें पर आधारित प्राेजेक्ट्स बनाकर उनके जरिए शाश्वत जीवन या स्थायी विकास की ओर बढ़ना संभव है. हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हर जगह डिश एंटीना खड़ा करना हमारे विकास की परिभाषा है? दाे वक्त सेहतमंद व विषमुक्त आहार समय पर खाने काे मिलना, जीवनावश्यक बाताें का पर्याप्त भंडारण रहना यही सही मायने में विकास का मुद्दा हाे सकता है.
 

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