मनुष्य अपनी आदत से जीता है, हाेश से नहीं

    29-Jul-2022
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Osho 
 
महावीर के हिसाब से बच्चे काे ही दीक्षा देनी चाहिए. महावीर कहते हैं, जिसका अनुभव हाे जाये, उससे छुटकारा मुश्किल है. महावीर कहते हैं, जिसका हम अनुभव करते हैं ताे अनुभव की प्रक्रिया में आदत निर्मित हाेती है. जितना अनुभव करते हैं, उतनी आदत निर्मित हाेती है. और आदत का एक दुष्टचक्र है आदत का एक दुष्टचक्र है. धीरे-धीरे यांत्रिक हाे जाता है. एक अनुभव किया, दूसरा अनुभव किया, िफर यह अनुभव हमारे शरीर की, राेयें-राेयें की मांग बन जाती है. िफर इस अनुभव के बिना अच्छा नहीं लगता, और अनुभव से भी अच्छा नहीं लगता. अनुभव करते है ताे लगता है कुछ भी न मिला, और अनुभव नहीं करते हैं ताे लगता है कुछ खाे रहा है. ताे अनुभव करते हैं, पछताते हैं और तब िफर खाली जगह मालूम हाेने लगती है, िफर अनुभव करते हैं. महावीर कहते हैं, जिसका अनुभव कर लिया जाये, अनुभव आदत का निर्माता हाे जाता है., और आदमी जीता है आदत से. आप चाैबीस घंटे जाे करते हैं, वह र्सिफ आदत है.
 
जरूरी नहीं है कि करने के लिए काेई अंतःप्रेरणा रही हाे. ठीक वक्त राेज भाेजन करते हैं, उस वक्त शरीर कहता है, भूख लगी है. जरूरी नहीं है कि भूख लगी हाे. और घड़ी अगर बदलकर रख दी जाये, और आप एक बजे राेज भाेजन लेते हैं और आपकाे पता न हाे कि घड़ी धाेखा दे रही है, अभी ग्यारह ही बजे हैं और घड़ी में एक बज गया, ताे आपका पेट खबर देना शुरू करेगा कि भूख लग गयी है. मन काे खबर हुई कि एक बज गया, कि आदत दाेहरानी शुरू हाे जायेगी.आप जिस वक्त साेते हैं, अगर उसी वक्त न साे जायें ताे नींद तिराेहित हाे जाती है. अगर नींद वास्तविक थी और आप राेज बारह बजे रात साेते थे, ताे एक बजे रात तक और भी तीव्रता से आनी चाहिए. लेकिन अगर बारह बजे नहीं साेये, एक बज गया, ताे नींद आती ही नहीं. वह जाे बारह बजे की नींद थी, आदतन थी, हैबिचुअल थी.
 
वास्तविक नींद नहीं थी. अगर आपकाे एक बजे भूख लगती है और तीन बज गये, ताे आप हैरान हाेंगे, भूख मर जाती है. बढ़नी चाहिए. अगर वास्तविक भूख है ताे एक बजे वाली भूख तीन बजे और गहरी हाे जानी चाहिए, लेकिन तीन बजे भूख मर जाती है.
क्याेंकि भूख आदतन थी.सभ्य आदमी जितना सभ्य हाेता है, उतनी आदत से जीता है. न असली भूख रह जाती है, न असली नींद. तब आदमी का काम अनुभव भी आदत हाे जाता है. तब जरूरी नहीं कि भीतर काेई अंतःप्रेरणा हाे. आदत दाेहराती चली जाती है.
एक बहुत बड़े विचारक डी.एच. लारेंस ने लिखा है कि विवाह अनुभव कम, आदत ज्यादा है. वही कमरा, वही बिस्तर, वही रंगराैनक, वही पत्नी, वही समय- आदत. डी. एच. लारेंस ने लिखा है कि एक बात मुझे इतनी कष्टकर है जितनी और काेई नहीं.
 
राेज उसी बिस्तर पर साेना. उसने लिखा है कि मैं कहीं भी मरना पसंद करूंगा, बिस्तर पर नहीं.ऐसे आमताैर से निन्यानबे प्रतिशत लताे बिस्तर पर मरते हैं.अधिकतम दुर्घटनाएं बिस्तर पर घटती हैं. डी.एच. लारेंस ने कहां है, बिस्तर एक आदत है. और ठीक समय पर जैसे भूख लगती है और नींद आती है, ठीक समय पर काम की वृत्ति पैदा हाे जाती है. और तब लाेग आदतें दाेहराते रहते हैं. महावीर कहते हैं, अनुभव आदत का निर्माण करता है और आदमी आदत से जीता है, हाेश से नहीं जीता.अगर हाेश से जीये ताे तंत्र की बात ठीक हाे सकती है. लेकिन आदमी जीता है आदत से, हाेश से नहीं जीता. इसलिए महावीर की बात में भी अर्थ है.