एंटी-करप्शन एक्ट में रिमांड के चांस कम होते हैं और जमानत मिलने के चांस ज्यादा : एड़ राशिद सिद्दिकी

24 Nov 2023 14:01:15
 
d
 
एड. राशिद सिद्दीकी
(मो. नं. 9595957126)
Pune session Bar Code 12848

************************************

एंटी करप्शन ब्यूरो,
‌‘सी बॅराक' सेंट्रल बिल्डिंग बी.जे.
मेडिकल कॉलेज के सामने पुणे 411001.
020 26122134.
लॉगिंग करें ऑनलाइन तकरार के लिये
acbmaharashtra.gov.in

*************************************** 
 
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 प्रिवेन्शन ऑफ करप्शन एक्ट में लोकसेवकों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में शामिल लोगों के लिये सजा का प्रावधान है. सन्‌‍ 2018 में इस कानून का संशोधन करते हुए इस कानून को रिश्वत लेने और रिश्वत देने की श्रेणी में रखा गया है. देश में बढ़ती रिश्वतखोरी पर विराम लगाने के लिये केन्द्र सरकार ने संसद में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 को देश भर में लागू किया था. इस कानून को प्रिवेन्शन ऑफ करप्शन एक्ट के नाम से भी जाना जाता है और इसे सरल भाषा में एंटी-करप्शन एक्ट भी कहते हैं.
 
देश की अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा इसके लिये एंटी-करप्शन ब्यूरो बनाये गये हैं, जिसे शॉट फॉर्म में ए.सी.बी कहते हैं. ए.सी.बी यानि एंटी करप्शन ब्यूरो में दो प्रकार होते हैं. एक राज्य सरकार के अधीन चलता है, जिसमें राज्य पुलिस फोर्स के पुलिस अधिकारी व कर्मचारियों को लिया जाता है. दूसरा केन्द्र सरकार के अधीन बनाया गया है जिसमें सी.बी.आई के अधिकारी व कर्मचारी काम करते हैं. इन दोनों विभागों के काम काज की रुपरेखा अलग-अलग होती है. यह जानकारी क्रिमिनल लॉयर एड़. राशिद सिद्दिकी ने आज का आनंद प्रतिनिधि को चर्चा के दौरान दी. उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये पहला कानून भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1947 था जिसमें इंडियन पैनल कोड की धारा 161,162,163,164 और 165 शामिल हैं.
 
यह धाराएं उस वक्त लागू होती हैं जब कोई लोकसेवक रिश्वत मांगता है, अपने पद का दुरुपयोग करता है, या कोई कीमती उपहार मांगता है. आई.पी.सी. की इन धाराओं में तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान था. बढ़ती रिश्वतखोरी को ध्यान में रखते हुए 1988 में इसके लिये भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 बनाया गया. यह कानून 9 सितंबर 1988 को पूरे देश में लागू किया गया. इस कानून के तहत कोई सरकारी नौकर, या सरकारी कर्मचारी रिश्वत मांगते हुए पकड़ा जाता है तो उसे 7 साल की सजा और जुर्माना दोनों से दंडित किएं जाने का प्रावधान है. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 के तहत कोई लोकसेवक पुलिस अधिकारी - कर्मचारी यदि रिश्वत मांगता है तो इस धारा के तहत उस पर कानूनी कार्रवाई की जाती है.
 
चर्चा के दौरान एड़. राशिद सिद्दिकी ने आगे कहा कि एंटी-करप्शन ब्यूरो द्वारा जब भी किसी पुलिस अधिकारी-कर्मचारी या लोकसेवक को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों पकड़ा जाता है, उसे अगले दिन जब न्यायालय के समक्ष हाजिर किया जाता है तो आरोपी को रिमांड मिलने के चांस कम होते हैं और जमानत मिलने के चांस ज्यादा होते हैं. इसका एक मुख्य कारण यह होता है कि आरोपी सरकारी नौकर होता है. इसके भाग जाने या फरार होने की संभावना नहीं होती. दूसरा कारण रिश्वत में मांगी गयी रकम ए.सी.बी. द्वारा बरामद हो चुकी होती है, ऐसी परिस्थिति में रिमांड मांगने या जमानत का विरोध करने को न्यायालय उचित नहीं ठहराती, जिसके चलते आरोपी को जमानत मिल जाती है.
 
किस तरह एंटी-करप्शन ब्यूरो जाल बिछाकर आरोपी को रंगेहाथों पकड़ा जाता है ?
एंटी-करप्शन ब्यूरो में पहले लिखित शिकायत दर्ज करनी होती है, जो फरियादी की हैंडराइटिंग में मांगी जाती है, क्योंकि शिकायत हैंडराइटिंग में होने से फरियादी के कोर्ट में पलट जाने का रिस्क नहीं होता. दूसरे जिस लोकसेवक या पुलिस अधिकारी द्वारा रिश्वत मांगी गयी है, फरियादी द्वारा उसे फोन लगाने को कहा जाता है. सामने वाला अगर फोन नहीं उठाता तो शॉट फॉर्म में उसे एस.एम.एस भेजा जाता है. उसमेंं कहा जाता है, साहब काम हो गया मैं आ रहा हूं, माल रेडी है, या बंदोबस्त हो गया साहब. इस तरह के एस.एम.एस पर सामने वाला व्यक्ति ओके, डन, ठीक है, आदि जवाब देता है तो समझो वह रिश्वत स्वीकार कर रहा है.
 
इस कानून में एंटी- करप्शन की तीसरी प्रक्रिया समझो, सामने वाले ने 25 हजार की रिश्वत मांगी है उन पच्चीस हजार के नोटो के नंबर को केस डायरी में लिखकर उसकी रिपोर्ट हेडक्वार्टर यानि मुख्यालय को भेजनी होती है. चौथी प्रक्रिया उन नोटों पर एक चमकदार स्याही लगानी होती है, स्याही अंधेरे में चमकती है. पांचवीं प्रक्रिया में रिश्वत में मांगी गयी रकम का एक सरकारी पंच के समक्ष पंचनामा किया जाता है. छठी प्रक्रिया फरियादी की शर्ट के अंदर वाइस रिकॉर्डर कंट्रोल रुम से कनेक्ट रहता है. सातवीं और आखिरी प्रक्रिया में फरियादी रिश्वत मांगने वाले अधिकारी के सामने जाता है और एंटी-करप्शन की टीम सादी वर्दी में पीछे -पीछे रहती है. जैसे ही फरियादी सामने वाले अधिकारी को पैसा देता है, उसे रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया जाता है. वहीं पंच के सामने पंचनामा करकर प्रक्रिया पूरी की जाती है.
 
(भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में कौन-कौन सी धाराएं लाई जाती हैं)
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 49 की उपधारा 1 जम्मू कश्मीर के सिवाय देश के किसी भी राज्य में लागू नहीं होती है. इस कानून की धारा-491 की उपधारा - 3 के अंतर्गत कोई व्यक्ति जो किसी केन्द्रीय प्रान्तीय या राज्य की किसी विधि द्वारा गठित किसी निगम प्राधिकरण निकाय में कार्यरत है जिसे सरकार द्वारा सहायता प्राप्त है. अगर वह किसी संस्थान से सहायता मांगता है, डोनेशन मांगता है तो उसे रिश्वतखोरी की श्रेणी में रखा जाएगा. धारा-4 में अगर कोई न्यायाधीश या विधि द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति जिसे स्वयं किसी समूह के सदस्य के नाते न्याय निर्वहन का कार्य करना हो.
 
इस कानून की उपधारा- 5 में काई व्यक्ति जिसे न्याय प्रशासन के संबंध में न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा किसी कर्तव्य निर्वहन हेतु अधिकृत किया गया हो. वह व्यक्ति भी अगर कोई गैरजिम्मेदाराना हरकत करता है तो उस पर उपधारा -5 के तहत कार्रवाई की जाएगी. भ्रष्टाचार अधिनियम 1988 की धारा 49 और उपधारा- 1 से सात में अलग-अलग परिस्थिति में अलग-अलग प्रावधान हैं. इस कानून की सबसे खास बात यह है कि अगर कोई पुलिस अधिकारी और कर्मचारी इस कानून के तहत गिरफ्तार होता है तो उसे जमानत तुरंत मिल जाती है. परंतु दोष आरोपपत्र कोर्ट में दाखिल होने मेें सालों लग जाते हैं. चार्जशीट पहले हेडक्वार्टर भेजती है, वहां से अनुमति के बाद चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की जाती है.
 
 
Powered By Sangraha 9.0