बुद्ध एक बार एक जंगल में बैठे हुए थे और एकदम जंगल में जैसे एक भूकंप आ गया हाे. सारे जानवर बुद्ध के सामने से भागते हुए निकले. थाेड़ी देर ताे वे बैठे देखते रहे कि मामला क्या है? उन्हाेंने एक हिरण काे पकड़ कर पूछा कि बात क्या है, कहां भागे जाते हाे? उसने कहा कि छाेड़िए, इधर रुकने की ुर्सत नहीं है. आपकाे पता नहीं, आखिरी दिन आ गया है दुनिया का, सृष्टि नष्ट हाेने के करीब है! महाप्रलय आ रहा है! लेकिन बुद्ध ने पूछा कि तुझे कहा किसने? उसने कहा कि वे जाे लाेग आगे जा रहे हैं. आगे वालाें के पीछे बुद्ध भाग कर पहुंचे, उन्हें राेका, पकड़ा, पूछा कि जा कहां रहे हाे? शेर भी भागे जा रहे हैं, हाथी भी भागे जा रहे हैं. जाते कहां मित्र? उन्हाेंने कहा कि आपकाे पता नहीं, महाप्रलय आ रहा है? लेकिन बताया किसने? ताे उन्हाेंने कहा वे लाेग जाे आगे जा रहे हैं. बुद्ध भागते भागते बड़े परेशान हाे गए, क्याेंकि जाे भी मिला उसने कहा, जाे लाेग आगे जा रहे हैं.
आखिर में, सबसे आखिर में खरगाेशाें की एक भीड़ मिली. उनसे बुद्ध ने पूछा कि दाेस्ताे! कहां भागे चले जा रहे हाे? उनकी ताे हालत समझ सकते हैं. जब शेर और हाथी भाग रहे हाें ताे बेचारे खरगाेश! उन खरगाेशाें ने ताे रुकने की भी हिम्मत नहीं की. एक खरगाेश था उनका नेता. उन्हाेंने बुद्ध ने बामुश्किल उसकाे पकड़ा और पूछा कि दाेस्त! कहां भाग रहे हाे? उसने कहा. कहां भाग रहा हूं? महाप्रलय हाेने वाली है. किसने तुझे कहा? उसने कहा, किसी ने कहा नहीं, ऐसा मुझे अनुभव हुआ है.अनुभव तुझे कैसा हुआ? वह खरगाेश कहने लगा, मैं एक वृक्ष के नीचे साे रहा था, दाेपहर थी, ठंडी हवाएं चल रही थीं और एक छाया में साेया हुआ था, िफर एकदम से काेई जाेर की आवाज हुई और मेरी मां ने मुझसे बचपन में कहा था कि जब ऐसी आवाज हाेती है ताे महाप्रलय आ जाता है.
बुद्ध ने उस खरगाेश से कहा पागल! किस वृक्ष के नीचे बैठा था? वह कहने लगा आमाें का वृक्ष था. बुद्ध ने कहा काेई आम ताे नहीं गिरा था? उसने कहा यह भी हाे सकता है. बुद्ध उसे लेकर उस वृक्ष के पास लाैटे. वहां ताे काी आम गिरे थे. वह खरगाेश कहने लगा, मैं इस जगह साेया हुआ था. ये आम ही गिरे हाेंगे.लेकिन मेरी मां ने मुझे कहा था कि जब महाप्रलय हाेती है ताे बड़े जाेर की आवाज हाेती है. आवाज बड़े जाेर की थी. और सारा जंगल भाग रहा था एक खरगाेश के कहने पर! सारी दुनिया भाग रही है करीबकरीब ऐसे ही. हम भी अगर इस भांति भागते हैं जीवन में एक आदमी खबर कर देता है, हिंदूमुस्लिम दंगा हाे गया, िफर काेई भी नहीं पूछता कि किस खरगाेश ने यह हरकत शुरू की है. िफर गांव का माैलवी, पंडित, संन्यासी, धार्मिक, पूजापुजारी, माला ेरने वाला, जनेऊ वाला, तिलक छापे वाले सब भागने लगते हैं.
हिंदूमुसलमान दंगा हाे गया है! यह सारी मनुष्यजाति अत्यंत एब्सर्डिटी, मूढ़ता से भरी हुई है और इस मूढ़ता की बुनियाद में एक बात है, वह यह कि हम दिए हुए ज्ञान काे पकड़ कर तृप्त हाे जाते हैं.उसे स्वीकार कर लेते हैं.जाे आदमी बाहर से आए हुए ज्ञान से चुपचाप राजी हाे जाता है उस आदमी के भीतर वह घटना पैदा नहीं हाेती कि उसका अपना ज्ञान पैदा हाे सके. अपना ज्ञान पैदा हाेता है उस वैक्यूम में, उस शून्य में जब आप बाहर के ज्ञान काे इनकार कर देते हैं. कह देते हैं कि नहीं, हमारे द्वार पर नहीं है प्रवेश इस जान का जाे दूसरे का है. जाे दूसरे का है वह हमारे लिए अज्ञान के ही बराबर है, अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है. अज्ञान कम से कम अपना ताे है. और यह ज्ञान है दूसरे का. जाे आदमी दूसरे के ज्ञान काे कह देता है कि नहीं, अज्ञान है मेरा और मेरे ज्ञान से ही टूट सकता है.