गांवों को बाहर कर स्वतंत्र नगरपालिका बनाने की मांग राजनीतिक!

राज्य सरकार द्वारा लिया गया फैसला लंबे समय तक नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखेगा

    10-Apr-2023
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पुणे, 9 अप्रैल (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
 
सिर्फ 5 साल पहले मनपा में शामिल उरुली देवाची और फुरसुंगी गांवों को बाहर करने के फैसले के बाद कुछ और गांवों को बाहर करने की मांग जोर पकड़ रही है. इतना ही नहीं, हड़पसर-वाघोली को स्वतंत्र नगरपालिका बनाने की मांग भी तेज हो गई है. इससे असमंजस का माहौल निर्मित हो गया है, क्योंकि मूल रूप से इन गांवों को मनपाओं में शामिल करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता अब इन गांवों को बाहर करने की मांग कर रहे हैं. यह निर्णय, शामिल गांवों में नागरिक सुविधाओं के वितरण में तेजी लाने में विफलता को छिपाकर महज ‌‘राजनीतिक' लाभ के लिए किए गए हैं. इससे शहर के विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की संभावना है. पिछले 60 वर्षों में पुणे मनपा की सीमाओं का विस्तार हुआ है. पुणे शहर में जो एक औद्योगिक और शैक्षिक शहर है, मनपा सीमा के बाहर शहरी बस्तियों का विस्तार और फिर इन शहरी बस्तियों को मनपा में शामिल करना एक सतत प्रक्रिया है.
 
1997 में 37 गांवों को मनपा में शामिल किया गया था. 34 गांव जो उस समय पूरी तरह से या आंशिक रूप से बाहर थे, उन्हें पिछले 5 वर्षों में मनपा में शामिल किया गया है. लेकिन बीच के 20 वर्षों में, धन की कमी के कारण बाहर किए गए गांवों में कई समस्याएं उत्पन्न हुईं. जैसे-जैसे इन गांवों की आबादी बढ़ती गई, अनगिनत अवैध निर्माण होते गए. संकरी सड़कों, अस्त-व्यस्त जल आपूर्ति, खराब अपशिष्ट प्रबंधन, जल निकासी लाइनों की कमी और बारिश के गटर के कारण यह गांव बेहाल हो गए थे. इतना ही नहीं, पीएमआरडीए की स्थापना के बाद भी इन गांवों में मनपा की जलापूर्ति व्यवस्था स्थापित नहीं होने तक विकासकर्ता द्वारा जलापूर्ति किए जाने का शपथ पत्र देना बंधनकारी किया गया. इससे इन गांवों की समस्याओं की गंभीरता का पता चलता है. नगरपालिका की मांग केवल सत्ता हासिल करने के लिए मनपा और पीएमआरडीए ने शामिल गांवों के लिए एक विकास योजना तैयार की है. इस विकास योजना को अभी मंजूरी का इंतजार है. मनपा इन गांवों में कचरे का प्रबंधन कर रही है और पानी की आपूर्ति और ड्रेनेज लाइन का काम भी शुरू कर दिया है.
 
गांवों की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए इन कार्यों के लिए धन की भारी आवश्यकता है और इन योजनाओं को पूरा करने में अगले 3 से 5 साल लगने की संभावना है. लेकिन, यदि गांवों को बाहर करने का निर्णय लिया जाता है और स्वतंत्र नगरपालिका स्थापित करने का निर्णय के बाद, इन बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में कितना समय लगेगा, इस सवाल का जवाब गांवों को बाहर करने की माग करने वाला राजनीतिक नेता नहीं दे रहा है. इससे गांवों को बाहर करने का निर्णय हो या स्वतंत्र नगरपालिका की मांग, केवल नई नगरपालिका में सत्ता हासिल करने के लिए किया जा रहा है. इतना ही नहीं, इस सत्ता संघर्ष में इस बात का डर अधिक है कि आम नागरिकों को सुविधाओं से लंबे समय तक वंचित होना पड़ेगा.
 
 
कम समय में सुविधाएं उपलब्ध कराना असंभव
 
मनपा में 34 गांवों को शामिल करते हुए नागरिकों की आपत्तियां और सुझाव मांगे गए थे. इन आपत्तियों और सुझावों को सुनने के बाद राज्य सरकार ने मनपा के नगर सुधार, स्थायी समिति और जीबी की मंजूरी के बाद ही इन गांवों को मनपा में शामिल करने का अंतिम फैसला लिया. सभी राजनीतिक दलों ने भी इन समितियों और जीबी में गांवों को शामिल करने का समर्थन किया है. हर राजनीतिक दल का नेता जानता है कि, केवल 3 से 5 वर्षों में भौगोलिक रूप से दो सौ वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में ना केवल मनपा के लिए बल्कि राज्य सरकार के लिए भी सभी सुविधाएं प्रदान करना असंभव है. फिर भी सुविधाओं और प्रॉपर्टी टैक्स की कमी का हवाला देते हुए इन गांवों को फिर से बाहर करने का रुख केवल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए लिया गया लगता है.
 
 
पालकमंत्री ने शहरी विकास मंत्रालय को पत्र भेजा
 
ऐसे में मुख्यमंत्री एवं शहरी विकासमंत्री एकनाथ शिंदे ने मनपा में शामिल होने के बाद ही प्रॉपर्टी टैक्स में काफी हद तक वृद्धि होने का कारण बताते हुए उरुली देवाची और फुरसुंगी के गांवों को बाहर करने का फैसला किया. इसके बाद हड़पसर के विधायक चेतन तुपे ने विधानसभा में हड़पसर और उसके आसपास के क्षेत्रों के लिए एक अलग नगरपालिका बनाने की मांग की. पालकमंत्री चंद्रकांत पाटिल ने हाल ही में वाघोली के एक नागरिक के पत्र के आधार पर शहरी विकास मंत्रालय को एक पत्र भेजा है, जिसमें मांग की गई है कि, वाघोली-हड़पसर स्वतंत्र नगरपालिका को वाघोली की स्वतंत्र नगरपालिका बनाया जाए या वाघोली की एक स्वतंत्र विकास योजना बनाई जाए. और इसके लिए फंड दिया जाए. शहरी विकास मंत्रालय ने इस संबंध में मनपा की राय मांगी है, इसेलेकर तरह-तरह की गरमागरम बहस छिड़ गई है.