पर्वती, 1 सितंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
श्रीमंत नारायणराव पेशवा की अप्रकाशित नाममुद्रा पहली बार प्रकाशित हुई है. इसके अलावा, यह जानकारी मिली है कि माहुली तीन नहीं बल्कि चार किलों से बना एक गढ़ है. इतिहासकार और मोडी लिपि के अभ्यासक राज मेमाणे द्वारा एक शोध पत्र में शोध और प्रस्तुत किया गया है.यह शोधनिबंध बैठक श्री देवदेवेेशर संस्थान, सारसबाग एवं पर्वती, पुणे के तत्वावधान में आयोजित की गई थी. इस समय कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में वरिष्ठ इतिहास विशेषज्ञ मंदार लवाटे और श्री देवदेवेेशर संस्थान के ट्रस्टी रमेश भागवत उपस्थित थे. राज मेमाणे ने कहा कि नारायणराव पेशवा को पेशवाओं के परिवार में सबसे दुर्भाग्यशाली पेशवा के रूप में जाना जाता है. पेशवा की आंतरिक राजनीति के कारण 30 अगस्त 1773 को शनिवारवाड़ा में उनकी हत्या कर दी गई.
जब नारायणराव पेशवा के पद पर थे, तब उनके मोडी पत्रों पर मश्री राजाराम नरपति हर्षनिधान नारायण राव बल्लाल मुख्य प्रधानफ नाम की मुहर मिलती है.हालांकि पेशवा पद ग्रहण करने से पहले भी नारायणराव नाम मुद्रा का उपयोग करते थे. अभी मिली हुई नाममुद्रा पुणे अभिलेखागार से है. नारायण राव ने रांजणगांव में वतनदारी के विवाद का फैसला किया था. उस पत्र पर यह मुद्रा पाई गई है. इस पत्र में लिखा है ‘श्री राजाराम चरणी तत्पर नारायणराव बल्लाल निरंतर' दिलचस्प बात यह है कि नारायण पेशवा ने यह फैसला महज ग्यारह साल की उम्र में दिया था.
मंदार लवाटे ने कहा कि नारायणराव पेशवा की हत्या को अब 250 साल हो गए हैं. नारायण राव को 11 साल की उम्र में जिम्मेदारी सौंपी गई थी और उन्हें बखलाशी कराने के लिए कहा गया था, इस बात का सबूत मेमाणे द्वारा शोध किए हुए नाममुद्रा से पता चलता है. ठाणे जिले के मुरबाड के पास माहुली नाम का गढ़ है, जिसे तीन किलों के संयोजन के रूप में जाना जाता है. वे तीन किले हैं भंडारदुर्ग, पलसगढ़ और माहुली. हालांकि पेशवा दप्तर के मोडी लिपी में लिखे हुए दस्तावेजों में दी गई जानकारी के अनुसार यह गढ़ तीन नहीं बल्कि चार किलों से बना है. मोडी दस्तावेजों से इस चौथे किले का नाम प्रतापगढ़ पाया गया है.