पूज्य पंन्यास अजीतचंद्रसागर महाराजसाहेब 1 मई काे वर्ली के एनएससीआई डाेम में स्मरण पर आधारित 1000 (हजार) अवधान करेंगे. जैन धर्म के इतिहास में यह महान उपलब्धि 650 वर्ष बाद घटित हाेना बताया जाता है.सहस्रावधान शब्दाें, पहेलियाें या कविताओं जैसी चीजाें काे क्षैतिज क्रम में याद करने और उन्हें दर्शकाें के सामने प्रस्तुत करने के लिए दर्शकाें द्वारा कहा गया काेई नाेट, कलम, कम्प्यूटर, कैलकुलेटर या हजाराें चीजें हाेती हैं. इसमें भी दर्शकाें में से काेई महाराजजी से नंबर के बारे में पूछ सकता है और उन्हें इसका जवाब देना हाेता है.कार्यक्रम छह घंटे तक चलेगा छह घंटे के कार्यक्रम में गणमान्य व्यक्ति, प्राेफेसर, वैज्ञानिक, शाेधकर्ता और चिकित्सक उपस्थित रहेंगे. हर इंसान के मन में ऐसी शक्ति हाेती है, बस इस पर ध्यान देने की जरूरत है. यदि व्य्नित में इच्छा हाे और वह अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहे ताे इस अवधि के दाैरान भी ध्यान प्राप्त करना संभव है.
पंन्यास अजीत चंद्रसागर महाराजसाहेब काे मेक्सिकाे के ‘एज्टेक विश्वविद्यालय’ द्वारा मानद डाॅक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है और लक्जरी जीवनशैली और व्यवसाय के लिए वैश्विक पत्रिका, त्रैमासिक पत्रिका ‘पैशन विस्टा’ के कवर पर ग्लाेबल आइकाॅन 2021 का नाम दिया गया है. गिनीज वर्ल्ड रिकाॅर्ड्स ने उन्हें दुनिया का दूसरा सबसे ‘प्रभावशाली व्नता’ घाेषित किया और एशिया में रिकाॅर्ड बनाया.अटेंशन अर्थात् स्मरण सहस्र अवधान का अर्थ है. हजाराें चीजाें काे एक साथ याद रखना और उन्हें बिना किसी नाेट, पेन, कम्प्यूटर, कैलकुलेटर के दर्शकाें के सामने प्रस्तुत करना हाेता है. इस संदर्भ में अजीत चंद्रसागरजी के गुरुमहाराज जैसा कि प.पू. आचार्य नयचंद्रसागरसूरीश्वरजी बताते हैं, समझने के लिए 3 शक्तियां आवश्यक हैं- ‘धी’ बुद्धि है जिसका कार्य अनुभव करना है, दूसरी शक्ति ‘धृति’ है जिसका कार्य धारण करना है, और तीसरी शक्ति स्मृति है जिसका कार्य समय पर याद रखना है.
ज्ञान केवल धारणा और समझ से नहीं आता. ज्ञान का सदुपयाेग तभी माना जाता है जब इसे प्राप्त करने के बाद इसे बरकरार रखा जाए और प्राप्त करने के बाद मांगे जाने पर इसे याद रखा जाए. शतावधान (100), बस्साे अवधन (200) और अर्ध सहस्रवधन (500) देने वाले पूज्य अजीतचंद्र सागरजी का कहना है कि, हर आदमी के दिमाग में यह शक्ति हाेती है. बस इस पर ध्यान देने की जरूरत है. अगर इंसान में चाहत हाे और वह अपने लक्ष्य पर अड़ा रहे ताे इस अवधि में भी उसे हासिल करना संभव है.हालांकि, अजीतचंद्रसागर अपने सहस्रावधन में केवल आगम, जैन सूत्र या पद ही नहीं कहेंगे, बल्कि इसमें गणित, साहित्य, व्याकरण, सामान्य ज्ञान, अन्य धर्माें के संस्कृत श्लाेक सहित विभिन्न विषयाें पर चर्चा, पहेलियां और तथ्य हाेंगे.सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इनमें से प्रत्येक सूत्र, प्रश्न, गणित प्रश्नाेत्तरी यादृच्छिक रूप से या किसी के द्वारा पूछे जाएंगे. इसमें दर्शकाें समेत कई संयुक्त शर्तें हाेंगी.
उदाहरण- एक पक्ष घंटी बजाता है, दूसरे साधु किसी वस्तु काे छूते हैं, तीसरे काेई कठिन गणित पहेली पूछते हैं, चाैथे किसी क्षेत्र या विश्व वास्तुकला में प्रतिष्ठित व्यक्तियाें की तस्वीरें दिखाते हैं.विशिष्ट शब्दाें की कुछ छंदाें में एक त्वरित कविता, पंक्तियां बनाई जाती हैं.सरल शब्दाें में कहें ताे इन 1 हजार श्लाेकाें काे अलग- अलग खंडाें में बांटा गया है. उदाहरण के लिए, कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति काे एक परिपत्र दिया जाएगा, जिसमें प्रत्येक अनुभाग का उल्लेख हाेगा. लघु प्रश्न 1 से 10 शब्दाें में पूछे जा सकते हैं. 11वीं से 20वीं, सुविचार और बातें, 21वीं से 30वीं, जैनअजैन शास्त्र और धार्मिक गुरु, इसी प्रकार 16 16 संख्या 447 की अंकगणित पहेलियां, 876 से 900 तक के चित्र या वस्तुएं आदि दिखानी चाहिए. दर्शकाें में से काेई भी व्य्नित अजीतचंद्रसागर म.सा.से उस खंड के अनुसार काेई प्रश्न या गणितीय उदाहरण या वाक्यांश, नाम आदि पूछ सकता है. ऐसी 1000 बातें पूरी करने के बाद अवध के महाराज उन प्रश्नाें के उत्तर, कहावतें, कविताएं, सूत्र, चित्र, नाम बताएंगे.
साथ ही इसमें एक ट्विस्ट भी आएगा कि वाे स्पेशल नंबर क्या था, या स्टाेरी नंबर क्या था? मेहमान अपने परिपत्राें में संबंधित उत्तर या वाक्य लिख सकते हैं और ‘टैली’ भी कर सकते हैं, लेकिन महाराज साहेब के पास काेई बाहरी नाेट नहीं हाेगा. वे सर्वेक्षण वार्ताएं उनके ‘मेमाेरी बाॅक्स’ में संग्रहित हाे जाएंगी. इस पूरे मानसिक अभ्यास का सर्वाेच्च शिखर ये है कि, कार्यक्रम में दाे-तीन ब्रेक हाेंगे ताकि दर्शकाें काे थकान नहीं हाे, लेकिन मंच पर मुनिराज माैजूद रहेंगे. वे न ताे किसी से बात करेंगे और न ही कहीं जायेंगे.महाराज साहेब कहते हैं कि, भारत के इतिहास में ऐसे किसी व्यक्ति का उल्लेखनहीं है जिसने एक हजार अवधान किये हाें. कुछ तमिल पंडित अवधान करते हैं, लेकिन उनके कार्यक्रमाें में अवधानकारक से अन्य पंडिताें द्वारा कंठस्थ धर्मग्रंथाें आदि के श्लाेक पूछे जाते हैं, जिस पर वे तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं. अर्थात उत्तर के बाद एक प्रश्न, उत्तर के बाद दूसरा प्रश्न, इस प्रकार सहस्र अवधान का कार्यक्रम 5 दिनाें तक चलता है.