जैन मुनि 1 मई को मुंबई में ऐतिहासिक प्रदर्शन करेंगे

पूज्य पंन्यास अजीतचंद्रसागर महाराजसाहेब वर्ली के एनएससीआई डोम में 1000 अवधान करेंगे

    29-Feb-2024
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पूज्य पंन्यास अजीतचंद्रसागर महाराजसाहेब 1 मई को वर्ली के एनएससीआई डोम में स्मरण पर आधारित 1000 (हजार) अवधान करेंगे. जैन धर्म के इतिहास में यह महान उपलब्धि 650 वर्ष बाद घटित होना बताया जाता है. सहस्रावधान शब्दों, पहेलियों या कविताओं जैसी चीजों को क्षैतिज क्रम में याद करने और उन्हें दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने के लिए दर्शकों द्वारा कहा गया कोई नोट, कलम, कम्प्यूटर, कैलकुलेटर या हजारों चीजें होती हैं. इसमें भी दर्शकों में से कोई महाराजजी से नंबर के बारे में पूछ सकता है और उन्हें इसका जवाब देना होता है. कार्यक्रम छह घंटे तक चलेगा छह घंटे के कार्यक्रम में गणमान्य व्यक्ति, प्रोफेसर, वैज्ञानिक, शोधकर्ता और चिकित्सक उपस्थित रहेंगे.
 
  हर इंसान के मन में ऐसी शक्ति होती है, बस इस पर ध्यान देने की जरूरत है. यदि व्यक्ति में इच्छा हो और वह अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ रहे तो इस अवधि के दौरान भी ध्यान प्राप्त करना संभव है. पंन्यास अजीत चंद्रसागर महाराजसाहेब को मेक्सिको के ‘एज्टेक विश्वविद्यालय' द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है और लक्जरी जीवनशैली और व्यवसाय के लिए वैेिशक पत्रिका, त्रैमासिक पत्रिका ‘पैशन विस्टा' के कवर पर ग्लोबल आइकॉन 2021 का नाम दिया गया है. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने उन्हें दुनिया का दूसरा सबसे ‘प्रभावशाली वक्ता' घोषित किया और एशिया में रिकॉर्ड बनाया. अटेंशन अर्थात्‌‍ स्मरण सहस्र अवधान का अर्थ है. हजारों चीजों को एक साथ याद रखना और उन्हें बिना किसी नोट, पेन, कम्प्यूटर, कैलकुलेटर के दर्शकों के सामने प्रस्तुत करना होता है. इस संदर्भ में अजीत चंद्रसागरजी के गुरुमहाराज जैसा कि प.पू. आचार्य नयचंद्रसागरसूरेीशरजी बताते हैं, समझने के लिए 3 शक्तियां आवश्यक हैं- ‘धी' बुद्धि है जिसका कार्य अनुभव करना है, दूसरी शक्ति ‘धृति' है जिसका कार्य धारण करना है, और तीसरी शक्ति स्मृति है जिसका कार्य समय पर याद रखना है.
 
ज्ञान केवल धारणा और समझ से नहीं आता. ज्ञान का सदुपयोग तभी माना जाता है जब इसे प्राप्त करने के बाद इसे बरकरार रखा जाए और प्राप्त करने के बाद मांगे जाने पर इसे याद रखा जाए. शतावधान (100), बस्सो अवधन (200) और अर्ध सहस्रवधन (500) देने वाले पूज्य अजीतचंद्र सागरजी का कहना है कि, हर आदमी के दिमाग में यह शक्ति होती है. बस इस पर ध्यान देने की जरूरत है. अगर इंसान में चाहत हो और वह अपने लक्ष्य पर अड़ा रहे तो इस अवधि में भी उसे हासिल करना संभव है. हालांकि, अजीतचंद्रसागर अपने सहस्रावधन में केवल आगम, जैन सूत्र या पद ही नहीं कहेंगे, बल्कि इसमें गणित, साहित्य, व्याकरण, सामान्य ज्ञान, अन्य धर्मों के संस्कृत श्लोक सहित विभिन्न विषयों पर चर्चा, पहेलियां और तथ्य होंगे. सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इनमें से प्रत्येक सूत्र, प्रश्न, गणित प्रश्नोत्तरी यादृच्छिक रूप से या किसी के द्वारा पूछे जाएंगे. इसमें दर्शकों समेत कई संयुक्त शर्तें होंगी. उदाहरण- एक पक्ष घंटी बजाता है, दूसरे साधु किसी वस्तु को छूते हैं, तीसरे कोई कठिन गणित पहेली पूछते हैं, चौथे किसी क्षेत्र या विश्व वास्तुकला में प्रतिष्ठित व्यक्तियों की तस्वीरें दिखाते हैं.
 
विशिष्ट शब्दों की कुछ छंदों में एक त्वरित कविता, पंक्तियां बनाई जाती हैं. सरल शब्दों में कहें तो इन 1 हजार श्लोकों को अलग- अलग खंडों में बांटा गया है. उदाहरण के लिए, कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक परिपत्र दिया जाएगा, जिसमें प्रत्येक अनुभाग का उल्लेख होगा. लघु प्रश्न 1 से 10 शब्दों में पूछे जा सकते हैं. 11वीं से 20वीं, सुविचार और बातें, 21वीं से 30वीं, जैनअजै न शास्त्र और धार्मिक गुरु, इसी प्रकार 16 16 संख्या 447 की अंकगणित पहेलियां, 876 से 900 तक के चित्र या वस्तुएं आदि दिखानी चाहिए. दर्शकों में से कोई भी व्यक्ति अजीतचंद्रसागर म.सा. से उस खंड के अनुसार कोई प्रश्न या गणितीय उदाहरण या वाक्यांश, नाम आदि पूछ सकता है. ऐसी 1000 बातें पूरी करने के बाद अवध के महाराज उन प्रश्नों के उत्तर, कहावतें, कविताएं, सूत्र, चित्र, नाम बताएंगे. साथ ही इसमें एक ट्विस्ट भी आएगा कि वो स्पेशल नंबर क्या था, या स्टोरी नंबर क्या था? मेहमान अपने परिपत्रों में संबंधित उत्तर या वाक्य लिख सकते हैं और ‘टैली' भी कर सकते हैं, लेकिन महाराज साहेब के पास कोई बाहरी नोट नहीं होगा. वे सर्वेक्षण वार्ताएं उनके ‘मेमोरी बॉक्स' में संग्रहित हो जाएंगी.
 
इस पूरे मानसिक अभ्यास का सर्वोच्च शिखर ये है कि, कार्यक्रम में दो-तीन ब्रेक होंगे ताकि दर्शकों को थकान नहीं हो, लेकिन मंच पर मुनिराज मौजूद रहेंगे. वे न तो किसी से बात करेंगे और न ही कहीं जायेंगे. महाराज साहेब कहते हैं कि, भारत के इतिहास में ऐसे किसी व्यक्ति का उल्लेख नहीं है जिसने एक हजार अवधान किये हों. कुछ तमिल पंडित अवधान करते हैं, लेकिन उनके कार्यक्रमों में अवधानकारक से अन्य पंडितों द्वारा कंठस्थ धर्मग्रंथों आदि के श्लोक पूछे जाते हैं, जिस पर वे तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं. अर्थात उत्तर के बाद एक प्रश्न, उत्तर के बाद दूसरा प्रश्न, इस प्रकार सहस्र अवधान का कार्यक्रम 5 दिनों तक चलता है.
 
 बचपन में शतावधान पूरा करने वाले पद्मप्रभचंद्रसागर महाराजसाहब
 
 

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3 मार्च को अष्टावधान करेंगे पद्मप्रभचंद्र सागर म.सा. ने सन 2014 में 12 साल की उम्र में अष्टावधान का प्रयोग किया था. अब 3 मार्च को गोरेगांव जवाहरनगर जैन संघ, मुंबई विश्वविद्यालय और मुंबई जैन संघ एसोसिएशन गोरेगांव में अष्टावधान प्रस्तुत करेंगे. इस चरण में 8 प्रक्रियाएं एक साथ चलेंगी. उदाहरण के लिए पहला प्रश्न दर्शकों से मानवता के मूल्य पर एक कविता बनाने के लिए कहता है. मुनिराज अगला प्रश्न आने से पहले उसकी एक पंक्ति सुनाते हैं
अथवा शास्त्र का दूसरा श्लोक इस प्रकार सुनाते हैं कि दूसरी पंक्ति में मधुर शब्द आ जाए. पूरा उत्तर देने से पहले एक गणितीय प्रश्न पूछा जाता है और पूरा उत्तर देने से पहले 5वां प्रश्न आता है. 8 प्रक्रियाएं लगातार की जाएंगी और उत्तर क्रम से दिए जाएंगे. कल्पना, विद्वत्ता, त्वरित काव्य, अंक ज्ञान आदि अनेक ज्ञान की परीक्षा करने वाला अष्टावधान भी अनोखा होगा.