70 % पुरुष और 30% महिलाएं हार्ट की बीमारियों से जूझ रहे !

इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मिलिंद गड़करी द्वारा दै.‌‘आज का आनंद‌’ को विशेष साक्षात्कार में जानकारी

    29-Jul-2024
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संपर्क : -
डॉ. मिलिंद गड़करी, गड़करी क्लीनिक,
तीसरी मंजिल, सिटी स्क्वेयर बिल्डिंग,
तानाजीवाड़ी, शिवाजीनगर,
पुणे- 411005.
मोबाइल नंबर : 9561408046
ईमेल : [email protected]
 
अव्यवस्थित जीवनशैली और ख़राब खान-पान, धूम्रपान, शराब एवं नशीले पदार्थों का सेवन, व्यायाम न करना, हार्ट अटैक आने के सबसे बड़े कारण हैं. मैंने अभी तक 1 लाख से अधिक एंजियोग्राफी की हैं और एंजियोप्लास्टी 10 हजार से अधिक की हैं. मैंने जब प्रैक्टिस शुरू की तो उस दौरान महिलाओं में विशेषकर 50 साल की उम्र से कम महिलाओं में हार्ट समस्याओं का खतरा न के बराबर होता था, लेकिन आज 70 प्रतिशत पुरुष और 30 प्रतिशत महिलाएं हार्ट की बीमारियों एवं समस्याओं से जूझ रहे हैं. हार्ट अटैक का सीधा संबंध कार्बोहायड्रेट एवं फैट से होता है. लोगों को कम फैट वाला और कम कार्बोहायड्रेट वाला भोजन करना चाहिए. यह जानकारी इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मिलिंद गड़करी द्वारा दै.‌‘आज का आनंद‌’ की पत्रकार रिद्धि शाह द्वारा लिए गए साक्षात्कार में साझा की गई. पेश हैं पाठकों के लिए उनसे की गई बातचीत के कुछ विशेष अंश :
 
 
सवाल : आप कहां से हैं और आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है?
जवाब : मूल रूप से हम कोंकण जिले से हैं, लेकिन मेरा जन्म ठाणे जिले के कल्याण में हुआ है. पुणे जिले में मेरे पिताजी का ट्रांस्फर तब हुआ था जब मैं 3 साल का था, तब से अब तक हम पुणे में ही हैं. मेरे पिताजी अवधूत गड़करी का निधन 1995 में हुआ और मेरी माताजी वसुंधरा का निधन हुए अब डेढ़ साल हो गए हैं. मेरी पत्नी शुभा पत्रकार हैं एवं इंडियन एक्सप्रेस की चीफ एडिटर रह चुकी हैं. वर्तमान में वे फ्रीलांसिंग करती हैं. मेरे दो बच्चे हैं और दोनों डॉक्टर हैं. मेरी बड़ी बेटी डॉ. यामिनी काले गाइनेकोलॉजिस्ट है और मेरा बेटा डॉ. आलोक ऑर्थोपेडिक सर्जन है और उसकी स्पाइन में विशेषता है.
 
सवाल : आप की शिक्षा संबंधी जानकारी दीजिये?
जवाब : मेरी पूरी शिक्षा पुणे से ही हुई है. मैंने सेंट विंसेंट स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी. 1972 में एसएससी परीक्षा पास होने के बाद 2 साल गरवारे कॉलेज में प्री-मेडिकल की पढ़ाई की. उसके बाद 1974 में मैंने ससून के बीजे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाया और वहां से एमबीबीएस किया. 1 साल की इंटर्नशिप की और उसके बाद मैंने 1980 में बीजे मेडिकल कॉलेज से ही एमडी की. 1982 में मैं एमडी हुआ उसके बाद 1983 में शादी हुई और उसके बाद हम इंग्लैंड चले गए और वहां मैंने कार्डियोलॉजिस्ट की 4 साल पढ़ाई की और वहीं से डिग्री प्राप्त की. 1987 में हम वापस भारत आये और मैंने फिर 2 साल दिल्ली के गोविंद बल्लभ पंत हॉस्पिटल में काम किया. 1990 से मैं पुणे में अपनी कार्डियोलॉजिस्ट की प्रैक्टिस कर रहा हूं. केईएम हॉस्पिटल, रूबी हॉस्पिटल और सह्याद्रि शुरू होने के बाद 2005 से वहां भी कार्डियोलॉजिस्ट की सेवाएं दे रहा हूं.
 
सवाल : मेडिकल की पढ़ाई में आपके जाने की क्या वजह थी और आपने कार्डियोलॉजिस्ट को ही अपना पपेशलाइअड एरिया क्यों चुना?
जवाब : मेरे पिताजी केईएम हॉस्पिटल के चीफ एडमिनिस्ट्रेटर थे और जब हम कल्याण से पुणे आये तो हमारा घर ही केईएम हॉस्पिटल में था. तो बचपन से ही डॉक्टरों से मिलना होता था. पढ़ाई में भी अच्छा था और आसानी से मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया. उस समय नीट भी नहीं थी न डोनेशन लिया जाता था, बस अच्छे नबरों पर ही एडमिशन दिया जाता था. बात करें कार्डियोलॉजिस्ट की तो जब मैं एमबीबीएस कर रहा था तब से मुझे कार्डियोलॉजी में रुचि थी. फिर जब एमडी किया उस दौरान हमें ससून के प्रसिद्ध कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. रवि गुलाटी पढ़ाते थे और मैंने उनसे प्रेरित होकर ही कार्डियोलॉजी में अपना स्पेशलाइजेशन किया.
 
सवाल : कार्डियोलॉजिस्ट की प्रैक्टिस करते हुए आपको कितने साल हो गए? इतने सालों की प्रैक्टिस में इस क्षेत्र में क्या बदलाव हुए हैं?
जवाब : मैं 1987 से कार्डियोलॉजिस्ट की प्रैक्टिस कर रहा हूं और अब मुझे इस क्षेत्र में सेवाएं देते-देते 37 साल हो गए हैं. इतने सालों में इस क्षेत्र में कई बदलाव आए हैं. मैंने जब प्रैक्टिस शुरू की थी तो उस दौरान दवाइयों की कमी हुआ करती थी और जो सोफिस्टिकेटेड दवाइयां होती थीं वे आयात करनी पडती थीं और 1991 में लिबरलाइजेशन के बाद सारी दवाइयां देश में ही बनने लग गईं और वर्तमान में दूसरे देशों के मुकाबले हमारे देश में ज्यादा दवाइयां उपलब्ध हैं. पहले उपकरण भी आसानी से नहीं मिलते थे और उन्हें इंपोर्ट करने में काफी प्रतिबंध थे और आसानी से लाइसेंस नहीं मिलता था. लेकिन अब यह देश में आसानी से उपलब्ध हैं और आज के दौर में कार्डियोलॉजिस्ट प्रैक्टिस करना पहले के मुकाबले में कई गुना आसान हो गया है.
 
सवाल : अब तक आपने कितने मरीजों पर प्रोसीजर किए हैं? उनमें महिला-पुरुषों का अनुपात कितना रहा है? ये प्रोसीजर कम-से-कम कितने वर्ष की आयु में और अधिकतम कितने वर्ष तक किये जा सकते हैं?
जवाब : मैंने अभी तक 1 लाख से अधिक एंजियोग्राफी की हैं और एंजियोप्लास्टी 10 हजार से अधिक की हैं. मैंने जब प्रैक्टिस शुरू की तो उस दौरान महिलाओं में विशेषकर 50 साल की उम्र से कम महिलाओं में हार्ट समस्याओं का खतरा न के बराबर होता था और मेनोपॉज के बाद खतरा थोड़ा बढ़ जाता था लेकिन वह भी कम था. लेकिन वर्तमान समय में कम उम्र की महिलाओं को भी हार्टअटैक आता है और उनकी एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी हो रही है. यह सब उनकी जीवनशैली में बदलाव के कारण हो रहा है. आजकल महिलाएं भी धूम्रपान और नशीले पदार्थ लेती हैं जिसके कारण भी उनमें हार्ट समस्याओं का खतरा बढ़ गया है. लेकिन पहले से लेकर अभी तक हार्ट समस्याएं सबसे ज्यादा पुरुषों को होती हैं और आज 70 प्रतिशत पुरुष और 30 प्रतिशत महिलाएं हार्ट की बीमारियों एवं समस्याओं से जूझ रहे हैं. प्रोसीजर किसी भी वर्ष की आयु में किया जा सकता है और 1 दिन के बच्चे में भी इकोकार्डियोग्राफी या इको प्रोसीजर किया जा सकता है.
 
सवाल : आपके अनुभव के अनुसार, कार्डियोलॉजिस्ट में सबसे बड़ी चुनौती क्या है? एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी और बायपास सर्जरी में क्या फर्क है? बायपास की स्टेज कब आती है?
जवाब : कार्डियोलॉजी में चुनौती यह है कि यह एक इमरजेंसी क्षेत्र है और आपको कभी भी, किसी भी समय, किसी भी स्थिति में उपचार करने के लिए तैयार रहना पड़ता है. हमारे क्षेत्र में मरीज की या तो जान बचेगी या जायेगी. इसके लिए सिर्फ 10 मिनट होते हैं और अगर हार्ट रुक गया तो व्यक्ति सिर्फ 5 से 6 मिनट तक जिंदा रह सकता है. इस क्षेत्र में और गाइनेकॉलॉजी क्षेत्र में तत्काल ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है नहीं तो मरीज की जान-जाने का खतरा होता है. इसमें सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आपको नहीं पता आपको कब बुलावा आये और जाना पड़े.
 
एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी दोनों रक्त वाहिकाओं से जुड़ी दो अलग-अलग चिकित्सा प्रक्रियाएं हैं. एंजियोग्राफी एक डायग्नोस्टिक प्रोसेस है, जिसका उपयोग आर्टरी और नसों में ब्लॉकेज का पता लगाने के लिए किया जाता है या ब्लड वैसल्स की जांच करने के लिए किया जाता है. जबकि, एंजियोप्लास्टी का उपयोग रक्त वाहिकाओं में ब्लॉकेज इत्यादि का उपचार करने के लिए किया जाता है. एंजियोप्लास्टी, जिसे परक्यूटेनियस ट्रांसल्यूमिनल एंजियोप्लास्टी (पीटीए) या परक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन (पीसीआई) के रूप में भी जाना जाता है. यह इलाज का एक ऐसा तरीका है, जिसमें नसों की सिकुड़न और बाधित हुई धमनियों को खोला जाता है. हृदय की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति करने वाली कोरोनरी धमनियों में रुकावटों को दूर करने के लिए इस तकनीक का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है.
 
प्रभावित रक्त वाहिका तक पहुंचने के लिए, आमतौर पर कमर या कलाई क्षेत्र में एक छोटा चीरा लगाया जाता है. कैथेटर नामक एक पतली, लचीली ट्यूब को चीरे के माध्यम से नस के अंदर डाला जाता है और इमेजिंग तकनीकों का उपयोग करके रक्त वाहिकाओं के माध्यम से रुकावट वाली जगह पर ले जाया जाता है. एक बार जब कैथेटर अपनी स्थिति में आ जाता है, तो उसकी नोंक पर एक छोटा गुब्बारा रुकावट वाली जगह पर फुलाया जाता है. यह तकनीक धमनी (नस) की दीवारों पर जमा प्लाक या फैट को कम कर देती है, जिससे धमनी (नसें) चौड़ी हो जाती हैं और ब्लड सर्कुलेशन बेहतर हो जाता है. यह पूरी प्रक्रिया लोकल एनेस्थीसिया के अंतर्गत होती है. मरीजों को आमतौर पर हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने से पहले ही रिकवरी महसूस होने लगती है. बायपास एक सर्जिकल प्रक्रिया है. इसमें मरीज को जनरल एनेस्थीसिया देना पड़ता है और चीर-फाड़ होती है.
 
एक छेद बनाने के लिए छाती की हड्डी को अलग किया जाता है ताकि दिल और महाधमनी को देखने में मदद मिलती है और सर्जरी करनी पड़ती है. वहीं एंजियोप्लास्टी के लिए 20 से 45 मिनिट का समय लगता है लेकिन बायपास के लिए 3 घंटे से 7 घंटे भी लग सकते हैं. बायपास एक जटिल सर्जरी होती है और मरीज को रिकवरी के लिए 1 महीना लगता है. मरीज में बायपास की स्टेज तब आती है जब मल्टीप्ल ब्लॉक्स होते हैं और ब्लॉक किधर है, किस प्रकार का है यह सबसे ज्यादा मायने रखता है. कभी-कभी आर्टरीज काफी ठोस रहती हैं, जो एंजियोग्राफी में समझ आती है और ठोस आर्टरीज को कैल्सिफाइएड आर्टरीज कहा जाता है और इस मामले में एंजियोप्लास्टी नहीं की जा सकती है. इस मामले में बायपास सर्जरी ही करनी पड़ती है. लेकिन नई टेक्नोलॉजी की वजह से यह काउंटर कर सकते हैं और रोटा एबलेशन की मदद से नसों से कैल्शियम के ब्लॉकेज को निकालकर एंजियोप्लास्टी कर सकते हैं.
 
सवाल : हार्ट समस्याओं के लिए उपचार के क्या नवीनतम विकल्प हैं और वे कैसे कार्य करते हैं? आपके फील्ड में एआई का कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है?
जवाब : अभी दवाइयां काफी एडवांस्ड आ गई हैं और अगर ब्लॉकेज ज्यादा नहीं हैं, जैसे 30 प्रतिशत या 50 प्रतिशत ही ब्लॉकेज हैं तो उसमें एंजियोप्लास्टी की जरूरत नहीं होती. दवाई से ही यह ट्रीट किया जा सकता है. वहीं नई-नई उन्नत स्कैन मशीनों ने भी प्रक्रियाएं आसान कर दी हैं. वहीं हमारे फील्ड में एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है और रोबोटिक सर्जरी भी होने लगीं हैं, लेकिन यह काफी महंगी हैं. विदेश में रोबोट के द्वारा सर्जरी होती हैं, क्योंकि इसमें संक्रमण का खतरा कम होता है. वहीं अभी हमारे क्षेत्र में एआई उपचार तो नहीं आए हैं, लेकिन एआई संचालित उपकरण एवं मशीनें आना शुरू हो गए हैं.
 
सवाल : पुणे और मुंबई में कुल कितने कार्डियोलॉजिस्ट हैं और इनमें महिलाओं और पुरुष का क्या अनुपात है?
जवाब : मुंबई में 1000 से अधिक और पुणे में 250 कार्डियोलॉजिस्ट हैं. इनमें 20 प्रतिशत महिला और 80 प्रतिशत पुरुष कार्डियोलॉजिस्ट हैं.
 
सवाल : आमतौर पर किस तरह के मरीज को दिल से संबंधित समस्याओं के लिए प्रोसीजर की सलाह दी जाती है?
जवाब : यह लक्षणों पर निर्भर करता है. जैसे चलते समय छाती में विशेषकर छाती के बीच में दर्द होना, लेफ्ट आर्म में एवं पीठ में दर्द होना, चलते समय सांस फूलना. पैरों, पिंडलियों या जांघों की मांसपेशियों में दर्द होना, दिल से संबंधित समस्याओं के लक्षण हैं. वहीं इको और स्ट्रेस टेस्ट में ब्लॉकेज का अनुमान आता है तब एंजियोग्राफी की सलाह दी जाती है. इसके बाद समस्या अनुसार एंजियोप्लास्टी या बायपास सर्जरी की सलाह दी जाती है.
 
सवाल : कार्डियोलॉजी क्षेत्र में अभी कोई नई रिसर्च एवं कोई नए विकास हुए हैं क्या?
जवाब : इस क्षेत्र में नई रिसर्च और विकास काफी हुए हैं. काफी प्रभावशाली दवाइयां आई हैं. इसमें हार्ट अटैक से लेकर लाइफ सेविंग, एरिथमिया की दवाइयां शामिल हैं. वहीं काफी एडवांस्ड पेसमेकर्स आये हैं और हार्ट का पंपिंग बढ़ाने के लिए भी पेसमेकर्स आये हैं. मैंने जब प्रैक्टिस करना शुरू किया था तब 6 से 7 मरीजों को बायपास की सलाह दी जाती थी और 2 या 3 एंजियोप्लास्टी के लिए आते थे. लेकिन अब उल्टा हो गया है अब एंजियोप्लास्टी 9 में होता है और बायपास 1 या 2 में.
 
सवाल : आजकल युवाओं में हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं, तो युवाओं में हार्ट रोगों के कारण क्या हो सकते हैं?
जवाब : अव्यवस्थित जीवनशैली और ख़राब खान-पान, धूम्रपान, शराब एवं नशीले पदार्थों का सेवन करना, व्यायाम न करना हार्ट अटैक आने का सबसे बड़े कारण हैं. मैंने 17 साल के उम्र के लड़के की एंजियोप्लास्टी की है. हार्ट अटैक का सीधा संबंध कार्बोहायड्रेट एवं फैट से होता है. स्कूलों में विद्यार्थियों को नशीले पदार्थों एवं तंबाकू, धूम्रपान, शराब के हानिकारक प्रभावों के बारे में बताना चाहिए और व्यायाम के और गुणवत्तापूर्ण जीवनशैली के फायदे बताने चाहिए ताकि हमारी आने वाली युवा पीढ़ी इन सब व्यसनों से दूर रहे. आजकल लोगों को कम फैट वाला और कम कार्बोहायड्रेट वाला भोजन खाना चाहिए.
 
सवाल : हार्ट को स्वस्थ्य और सेहतमंद बनाए रखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
जवाब : जंक फूड की जगह घर पर बना खाना खाएं, फल और हरी सब्जियों का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें. दिन में कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें. तनाव कम लें.
 
सवाल : क्या हार्ट से जुड़ी बीमारियों और दवाइयों या प्रोसीजर्स का इलाज महंगा होता है?
जवाब : हां, दवाइयों से ज्यादा महंगी होती है प्रोसीजर्स. प्राइवेट हॉस्पिटल में इसका खर्च सरकारी हॉस्पिटल के मुकाबले तीन गुना है. लेकिन लोगों को सरकारी हॉस्पिटल में भी अच्छा इलाज मिलता है. एक एंजियोप्लास्टी का खर्च निजी हॉस्पिटल में एक स्टेंट के लिए डेढ़ लाख रुपये तक आता है और बायपास के लिए कम से कम 3 लाख का खर्चा आता है. सवाल : कहा जाता है कि कोविड-19 के बाद से वैक्सीन के साइड इफेक्ट के कारण लोगों को हार्ट अटैक आकर उनकी डेथ हो रही है, इसमें कितनी सच्चाई है? जवाब : मैं बस यही कहना चाहूंगा कि वैक्सीन से जितनी जानें बची हैं, यह मामले उनके 1 प्रतिशत भी नहीं हैं.
 
सवाल : दिल की समस्याओं से बचने के लिए लोग कैसे अपनी जीवनशैली में बदलाव कर सकते हैं? हार्ट के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए आप लोगों को क्या सलाह देना चाहेंगे?
जवाब : जेनेटिक बीमारियों के प्रति सतर्कता बरतें और परहेज करें. हेल्दी डाइट लें, नियमित एक्सरसाइज करें, डायबिटीज को कंट्रोल करें, धूम्रपान न करें और शराब न पीयें, शरीर का वजन सही रखें, खुश रहें, तनाव कम लें, योग करें एवं मेडिटेशन करें. अपने शारिरिक व मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें.
 
कुछ महत्वपूर्ण सलाहें-
  • हार्ट को स्वस्थ्य और सेहतमंद बनाए रखने के लिए जंक फूड की जगह घर पर बना खाना खाएं.
  • फल और हरी सब्जियों का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें.
  • दिन में कम से कम 30 मिनट व्यायाम करें; तनाव कम लें.
  • जेनेटिक बीमारियों के प्रति सतर्कता बरतें और परहेज करें
  • डायबिटीज को कंट्रोल करें, धूम्रपान न करें और शराब न पीयें.