पुणे, 14 जनवरी (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
होम लोन पर गलत ब्याज लेने और अवैध दंडात्मक शुल्क वसूल करने वाली इंडिया इन्फोलाइन हाउसिंग फाइनेंस कंपनी को राज्य उपभोक्ता आयोग ने झटका दिया है. आयोग ने आदेश दिया है कि अतिरिक्त ब्याज और शुल्क ग्राहक को ब्याज सहित वापस किए जाएं. यह उपभोक्ता अधिकार की लड़ाई 7 साल 5 महीने तक लगातार लड़ी गई थी, जिसमें पुणे के रवींद्र सहस्त्रबुद्धे ने न्याय प्राप्त किया है. इस फाइनेंस कंपनी ने गलत तरीके से 2,58,234 रुपये जुलाई 2017 से 9% ब्याज के साथ ग्राहक को वापस करने का आदेश पुणे जिला उपभोक्ता न्यायालय से प्राप्त किया था.
अब राज्य उपभोक्ता आयोग ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी है. उल्लेखनीय है कि रवींद्र सहस्त्रबुद्धे ने जो पुणे में वित्तीय सलाहकार के रूप में कई वर्षों से काम कर रहे हैं ने जून 2014 में इंडिया इन्फोलाइन हाउसिंग फाइनेंस से गृहकर्ज लिया था. लेकिन कर्ज के संबंध में धोखाधड़ी होने का एहसास होने पर उन्होंने बहुत ध्यान से जांच की और 2017 में फाइनेंस कंपनी के गलत कार्यों के खिलाफ उपभोक्ता अधिकार संरक्षण न्यायालय में मामला दर्ज किया. पुणे जिला उपभोक्ता न्यायालय ने 3 अगस्त 2022 को उपभोक्ता के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन इंडिया इन्फोलाइन कंपनी ने राज्य आयोग में जनवरी 2023 में अपील की थी. इस अपील का फैसला 6 जून 2024 को आने के बाद भी फाइनेंस कंपनी ने नुकसान की भरपाई करने में पूरी तरह से अनदेखी की. जब उपभोक्ता ने रिकवरी के लिए एक और दावा दाखिल किया और वॉरंट जारी होने की स्थिति आई, तो आखिरी तारीख पर फाइनेंस कंपनी ने नुकसान भरपाई का डिमांड ड्राफ्ट अदालत में जमा किया.
अब जनवरी के दूसरे सप्ताह में रवींद्र सहस्त्रबुद्धे को नुकसान की भरपाई मिल जाएगी, और सितंबर 2017 से जनवरी 2025 तक का 7 साल 4 महीने का संघर्ष समाप्त होगा, ऐसी जानकारी सहस्त्रबुद्धे ने दी. इस फाइनेंस कंपनी ने रवींद्र सहस्त्रबुद्धे को कई तरीकों से परेशान किया. पहले मासिक किश्त में कर्ज देने से पहले का ब्याज अवैध तरीके से लिया गया, कर्ज चुकता करने के बाद भी कर्ज समाप्ति के बाद का ब्याज वसूला गया.
कर्ज को जल्दी चुकता करने के लिए शेष राशि का प्रमाणपत्र कई बार मांगने के बावजूद 137 दिन तक नहीं दिया गया. कर्ज मंजूरी पत्र और कर्ज समझौते में स्पष्ट रूप से लिखा होने के बावजूद कि कर्ज की समय से पहले चुकता करने पर कोई दंडात्मक शुल्क नहीं लगेगा, फिर भी दंडात्मक शुल्क लिया गया. खातेधारक ने कर्ज की पूरी तरह से समय पर चुकता की, फिर भी देर से चुकता होने का झूठा आरोप लगाकर अतिरिक्त ब्याज लगाया गया. इसके अलावा, गृहकर्ज पर ब्याज और मूलधन की पुनर्भुगतान के लिए दिए गए प्रमाणपत्र में आयकर से छूट प्राप्त करने के लिए गलत राशि दर्शाई गई.