दिल्ली की केंद्रीय सत्ता के लिए वर्ष 2023 में बना ‘इंडिया’ ब्लाॅक अधूरे राज्य दिल्ली की सत्ता की खातिर वर्ष 2025 के शुरू में ही बिखरता दिख रहा है. गठबंधन लाेकसभा चुनाव के लिए था, यह बात संकेताें में पहले भी कही गई है, लेकिन एक-दूसरे पर सीधे तल्ख हमलाें के बाद ताे किंतु-परंतु की भी गुंजाइश नहीं बची. गठबंधन में सबसे बड़े दल कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ने आप के राष्ट्रीय संयाेजक अरविंद केजरीवाल पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी की तरह झूठे वायदे करने का आराेप लगाया, ताे जवाबी टिप्पणी आई कि वह कांग्रेस बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि मैं देश बचाने की जब उद्देश्य ही अलग हैं, ताे रास्ते एक कैसे हाे सकते हैं? हाल ही में दाे बड़े नेताओं ने ‘इंडिया’ ब्लाॅक के औचित्य पर सवाल भी उठाए.
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने साफ कहा कि अगर गठबंधन लाेकसभा चुनाव के लिए ही था,ताे फिर ‘इंडिया’ ब्लाॅक काे बंग कर देना चाहिए. राजद नेता तेजस्वी यादव का बयान थाेड़ा कूटनीतिक है. उन्हाेंने यह ताे कहा है कि ‘इंडिया’ ब्लाॅक लाेकसभा चुनाव के लिए ही था, लेकिन कांग्रेस काे अपना पुराना साथी भी बताया.वैसे उमर ने जिस अंदाज में प्रधानमंत्री माेदी की प्रशंसा की है, उनके विपक्षी गठबंधन में बने रहने के औचित्य पर भी सवालिया निशान लग गए हैं. घटक दलें और नेताओं की महत्वाकांक्षाओं के टकराव से ही यह बिखर रहा है.घटक दलाें में और उनके नेताओं के दलाें में भी, दरारें पिछले साल ही नजर आने लगी थीं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव ने उसे खाई में बदल दिया लगताहै.
सवाल सिर्फ इतना नहीं कि विधानसभा चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हुआ. घटक दलाें में गठबंधन ताे पिछले साल हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी नहीं हुआ था. अतीत में झांकें, ताे 2023 के अंत में हुए राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावाें में भी ‘इंडिया’ के घटक दल एक-दूसरे के विरुद्ध ताल ठाेकते दिखे थे. फिर भी 2024 का लाेकसभा चुनाव वे ज्यादातर राज्याें में मिलकर लड़े. नई लाेकसभा के पहले सत्र में भी ‘इंडिया’ ब्लाॅक एकजुट दिखा, पर दूसरे सत्र में दरार और तकरार नजर आने लगी. शायद नरेंद्र माेदी से मुकाबले की चुनावी जरुरत समाप्त हाेते ही गठबंधन में ‘फ्रे फाॅर ऑल’ शुरू हाे गया है और हरेक दल अपने भविष्य की राजनीतिक बिसात बिछाने में जुट गया है. दाे लाेकसभा चुनावाें में माेदी की भाजपा से पस्त विपक्ष ने मजबूरी में तीसरे लाेकसभा चुनाव के लिए गठबंधन बनाया,पर सिर्फ दल एक बैनर तले आए थे,दिल नहीं.
जब दाे दर्जन दल मिलकर भी माेदी काे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से नहीं राेक पाए, ताे फिर निजी एजेंडा सतह पर आ गया है. लाेकसभा चुनाव में 10 में से पांच सीटें जीत गई कांग्रेस काे हरियाणा में किसी से गठबंधन की जरूरत नहीं लगी.महाराष्ट्र में अति आत्मविश्वास की फलहर पर सवा महाविकास आघाड़ी में ताे परस्पर शह-मात का खेल भी चला. हां, जम्मूकश्मीर और झारखंड में अवश्य ‘इंडिया’ जीता, पर उसमें भी केंद्रीय भूमिका वहां के क्षेत्रीय दलाें क्रमश: नेशनल काॅन्फ्रेंस और झारखंड मु्नित माेर्चा की रही.अब जब अगले लाेकसभा चुनाव 2029 में हाेने हैं, तब घटक दलाें की एक-दूसरे के प्रति मन की ‘गांठें’ ही ही ‘इंडिया’ के ‘बंधन’ खाेल रही हैं. ‘इंडिया’ में असंताेष के स्वर हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनावी पराभव के बाद मुखर हुए, मगर अब जब देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव हाे रहे हैं, तब बिखराव साफ नजर आने लगा है.
ध्यान रहे, कांग्रेस का मत प्रतिशत दिल्ली में गिरते-गिरते 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच प्रतिशत से भी नीचे चला गया था. कांग्रेस चुनाव ताकत से नहीं लड़ती,ताे उसके नेताओं-कार्यकर्ताओं के पलायन के साथ ही मत प्रतिशत में गिरावट भी जारी रहती.यह भी कि दाेनाें दल मिलकर लड़ते, ताे सत्ता विराेधी मताें के पास भाजपा ही एकमात्र विकल्प रहती, लेकिन कांग्रेस जिस तरह आप के विरुद्ध आक्रामकता नजर आ रही है, उससे ताे आपस में ही जंग का संदेश जा रहा है जिस शराब नीति घाेटाले में केजरीवाल समेत आप के कई वरिष्ठ नेता जेल गए, उसकी शिकायत कभी कांग्रेस ने ही की थी. उसके बावजूद लाेकसभा चुनाव के दबाव में दाेनाें गठबंधन में साथ आए, पर अब कांग्रेस ने जिस तरह आप की महिला सम्मान याेजना की उप-राज्यपाल से शिकायत की औरकथित शीशमहल का मुद्दा भी जाेर-शाेर से उठा रही है, ताे वह चुनावी अलगाव से ज्यादा रिश्ताें में खटास का संकेत है.
इसीलिए आप ने आराेप लगाया है कि कांग्रेस की भाजपा से सांठगांठ है. अभी तक दिल्ली में राजनीति करने वाले कांग्रेस नेता ही आप और केजरीवाल के विरुद्ध ज्यादा आक्रामक थे, लेकिन 13 जनवरी की शाम चुनावी रैली में खुद राहुल गांधी की टिप्पणियाें के बाद ताे किसी खुशफहमी की गुंजाइश नहीं बची.न सिर्फ घटक दल दिल्ली में एक-दूसरे के विरुद्ध पूरी आक्रामकता के साथ चुनावी ताल ठाेक रहे हैं, बल्कि अखिलेश यादव की सपा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने दिल्ली में आप के समर्थन का एलान कर गठबंधन के अंतर्विराेधाें काे उजागर कर दिया है.ऐसे ही स्वर उद्धव ठाकरे की शिव सेना के भी हैं. तस्वीर यही उभरती है कि छाेटे और क्षेत्रीय दल, कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं. तेजस्वी के बयान के मूल में इस साल के अंत में हाेने वाले बिहार विधानसभा चुनावाें के मद्देनजर कांग्रेस पर दबाव की रणनीति भी हाे सकती है पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटाें पर लड़कर मात्र 19 जीत पाई थी और महागठबंधन की कमजाेर कड़ी साबित हुई थी. उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी संकेत दे रही है कि मुंबई महानगर पालिका समेत निकाय चुनाव वह अकेले लड़ेगी.
- राज कुमार सिंह,(वरिष्ठ पत्रकार)