कोंढवा, 27 जनवरी (आ. प्र.)
आज जिनमंदिर में भगवान की प्रतिष्ठा की गई है, अब हमारे हृदयों में प्रभु की प्रतिष्ठा होनी चाहिए. जैसे दीपक अंधकार को दूर कर देता है, वैसे ही प्रभु अहंकारादि दोषों को दूर कर देते हैं. प्रभु और प्रभु की आज्ञा एक ही है. भगवान के दर्शन से पाप (कष्ट) दूर हो जाते हैं. भगवान की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है. भगवान की भक्ति से लक्ष्मी (गुण) की प्राप्ति होती है. प्रभु कल्पवृक्ष से भी अधिक प्रभावशाली हैं, यह विचार पं. नयरक्षितविजयजी ने व्यक्त किए. श्री गिरनार 108 सौ जैन संघ, कोंढवा, पूना में आचार्य अपराजितसूरि, पंन्यास राजरक्षितविजय, पंन्यास सत्वभूषणविजय, पंन्यास नयरक्षितविजय आदि साधुसाध्वीजी की पावन निश्रा में श्री शंखेेशर पोर्शनाथ नवनिर्मित जिनालय में अंजन विधि एवं निर्वाण कल्याणक के 108 अभिषेक हुए, इस अवसर पर पं. नयरक्षितविजयजी बोल रहे थे. इस अवसर पर संघ के विनती को मान देकर आचार्य विरागसागरसूरि एवं रामचन्द्रसूरी, प्रेम-भुवनभानुसूरि, आ. लब्धिसूरी, केशरसूरी, आ. कलापूर्णसूरी समुदाय के साध्वीजी भगवंत का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ . अंजन विधि के दौरान सैकड़ों भक्तों ने मंदिर परिसर में बैठकर ‘श्री शंखेेशर पोर्शनाथाय नमः' मंत्र का जाप किया और विशेष ऊर्जा प्राप्त की. शाह लीलाचंदजी प्रागजी निंबजिया और शाह प्रतापचंदजी केसाजी गुंदेशा परिवार ने घंटनाद, शंखनाद और संगीत के साथ मंगलमय उत्सव मनाया. ‘ओम् पुण्याहं ओम् पुण्याहं, प्रियंतां प्रियंतां' के मंत्रोच्चार से माहौल पोर्शनाथमय हो गया. प्रतिष्ठा के समय भक्तों ने हर्षोल्लास के साथ नृत्य भक्ति की. मंदिर के शिखर से ध्वज फहराए जाने पर पुष्पवर्षा की गई. श्री शंखेेशर पोर्शनाथ जिनालय के प्रेरक पुणे जिल्हा उद्धारक आ. देवश्री वेिशकल्याणसूरि हैं. आ. देवश्री अपराजितसूरि, पं. सत्त्वभूषण विजयजी ने मुंबई से आकर अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव की शोभा बढ़ाई. श्री गिरनार 108 सौ प्रतिष्ठा महोत्सव को अविस्मरणीय बनाने के लिए ट्रस्टियों-युवाओं एवं बहनों ने कड़ी मेहनत की है.