हमारे तथाकथित धर्म ने विक्षिप्त लाेग पैदा किए

30 Jan 2025 19:58:45
 
 
 

thoughts 
मैं एक सज्जन काे जानता हूं मेरे पड़ाेस में ही रहते थे.उनकाे लाेग बड़ा धार्मिक मानते थे. जब मैं उस जगह गया पहली दा रहने ताे लाेगाें ने मुझसे कहा कि हमारे पड़ाेस में एक अद्भुत व्यक्ति रहते हैं, बड़े धार्मिक हैं! मैंने कहा, उनकी धार्मिकता के संबंध में कुछ विस्तार से मुझे कहाे, क्याेंकि मैं इतने धार्मिक लाेगाें काे जानता हूं और जब उनका विस्तार पता चलता है ताे बड़ी हैरानी हाेती है.उनकी धार्मिकता की प्रसिद्धि का कुल कारण इतना था कि वे सुबह नल पर जब पानी भरने जाते थे ताे अगर काेई स्त्री दिखाई पड़ जाए ताे िफर से बर्तन मलते, िफर धाेते, िफर पानी भरते, इस बीच िफर काेई स्त्री दिखाई पड़ जाए ताे िफर बर्तन मलते. कभी-कभी दस दा, कभी-कभी बीस दा, कभी तीस दा! पानी भर कर चले आ रहे हैं रास्ते पर और िफर काेई स्त्री दिख गई. अब स्त्रियां ही स्त्रियां हैं सब तरफ.
 
इससे उनकी बड़ी ख्याति थी कि अहा, यह है ब्रह्मचर्य! अब यह आदमी ब्रह्मचारी है या पागल? एक महिला काे मैंने कहा कि मैं तुझे दस रुपये दूंगा, तू आज इनके पीछे ही पड़ जा. तेरा दिन भर का काम इतना ही है कि उसी नल के आसपास चक्कर लगाती रह, जहां ये पानी भरते हैं. आज सांझ तक इनकाे पानी भरने नहीं देना है....... .दस दा, बीस दा, पच्चीस दा, तीस दा, िफर आखिर उनकाे क्राेध आने लगा कि यह ताे स्त्री शरारत कर रही है. मतलब वही की वही स्त्री आ जाती है बार-बार! और मालूम है उन्हाेंने क्या किया? उन्हाेंने अपना जाे बर्तन था, जाे मटका था, वह उस स्त्री के सिर पर दे मारा. उस स्त्री काे अस्पताल ले जाना पड़ा. उसने मुझसे कहा कि दस रुपये में आपने महंगा काम करवाया.मैंने कहा तू िफकर मत कर, मगर एक आदमी का अध्यात्म से छुटकारा हुआ!
 
माेहल्ले भर के लाेगाें ने कहा कि यह कैसा आदमी है! भाई तुम्हें अपना बर्तन धाेना है धाेओ, मगर किसी के सिर पर ताे नहीं मार सकते.अब तक इसकाे वहां तक नहीं खींचा गया था जहां दुर्वासा प्रकट हाे जाता है, क्याेंकि कभी काेई एक स्त्री निकल गई ताे ठीक है, उसने धाे लिया अपना बर्तन. और इससे उसकाे प्रतिष्ठा मिल रही थी, इसलिए इसमें रस भी था. जिस दिन काेई स्त्री न गुजरती हाेगी उस दिन उसे मजा भी नहीं आता हाेगा. मगर एक सीमा है हर चीज की.मैंने उन सज्जन काे जाकर कहा कि उस स्त्री पर नाराज न हाें, नाराज हाेना हाे ताे मुझ पर हाें. मैंने ही आयाेजन किया था, देखना था कि अध्यात्म किस तरह का है. और स्त्री काे देख कर तुम्हारा जल अपवित्र हाे जाता है! तुम्हारा बर्तन अपवित्र हाे जाता है! अगर स्त्री काे देख कर कुछ अपवित्रहाेता है ताे तुम स्नान किया कराे, बर्तन क्याें मलते हाे? बर्तन के पास आंखें भी नहीं हैं! और पानी काे क्याें बदलते हाे, पानी का क्या कसूर है?
 
और जिस नदी से यह पानी आ रहा है, उसमें स्त्रियां नहा रही हैं, स्त्रियां ही नहीं, भैंसें क्रीड़ा कर रही हैं. और यह नल जिससे तुम पानी भर कर आते हाे, यह नालियाें में से गुजर रहा है, जमाने भर की गंदगियाें में से गुजर रहा है, कहां-कहां से हाेकर चला आ रहा है वह सब ठीक! और मैंने उनसे पूछा कि जब तुम पैदा हुए थे ताे स्त्री से पैदा हुए कि पुरुष से? नाै महीने मां के पेट में रहे कि नहीं? तब क्या करते रहे? कैसे गुजारे नाै महीने? िफर मां का दूध पीकर बड़े हुए, उसकी शुद्धि कैसे कराेगे? तुम जाओ अस्पताल में और सारा खून बदलवा लाे. सब खून निकलवा कर नया खून डलवा लाे. मगर ध्यान रखना, नया खून भी ऐसे आदमी से डलवाना जाे स्त्री से पैदा न हुआ हाे, और ऐसे आदमी का डलवाना जाे स्त्री से पैदा न हुआ हाे. बेहतर ताे यह हाे कि तुम खून निकलवा लाे, पानी भरवा लाे शुद्ध, गंगाजल!मगर उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी.
 
जब मैं वहां रहने लगा ताे कुछ ही दिनाें में वे छाेड़ कर चले गए उस इलाके काे.मैंने कहा तुम भाग न सकाेगे, तुम जिस इलाके में जाओगे वहीं मैं आ जाऊंगा. वे ताे गांव ही छाेड़ दिए. उनका पता ही नहीं चला वे कहां गए. वे किसी दूसरी जगह परमहंस हाे गए हाेंगे. तुम किसकाे अब तक साधु कहते रहे, संत कहते रहे भगाेड़ाें काे? और कारण कुल इतना था कि हमने बाहर और अंतर काे ताेड़ दिया. ताे एक तरफ थाेथा धार्मिक आदमी पैदा हुआ, जाे करीब-करीब विक्षिप्त है, और दूसरी तरफ भाेगी पैदा हुआ, वह भी बेचारा विक्षिप्त है. क्याेंकि वह साेचता है कि मैं ताे बाहर की यात्रा पर लगा हूं, मैं कैसे भीतर जाऊं! ताे वह भीतर जाने की चेष्टा नहीं करता. िफर उसे डर भी है कि भीतर जाएगा ताे बाहर की सारी की सारी व्यवस्था ताेड़नी पड़ेगी; वह वह ताेड़ना नहीं चाहता, उसके बड़े न्यस्त स्वार्थ हाे गए हैं.
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