पुणे ZTCC के योगदान से 1355 मरीजों को नया जीवनदान मिला है !

17 Feb 2025 15:11:14
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जोनल ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेशन सेंटर (जेडटीसीसी) एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसे राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया गया है. इसका उद्देश्य अंगदान और अंग-आवंटन से संबंधित कार्य करना है. यह अंगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने, मृतक दाताओं की पहचान करने, अंगों का सही तरीके से आवंटन करने और वेटिंग लिस्ट को बनाए रखने का काम करता है. पुणे जेडटीसीसी के योगदान से अब तक 1355 मरीजों को नया जीवनदान मिला है. वर्तमान में 2671 मरीजों की वेटिंग लिस्ट है. अंगदान से न सिर्फ एक व्यक्ति को नया जीवन मिल सकता है, बल्कि एक डोनर आठ लोगों की जान भी बचा सकता है, यह जानकारी पुणे जेडटीसीसी की सेंट्रल कोर्डिनेटर आरती गोखले ने दै. ‌‘आज का आनंद' की पत्रकार रिद्धि शाह द्वारा लिए गए विशेष साक्षात्कार में साझा की. पेश है पाठकों के लिए उनसे की गई बातचीत के कुछ विशेष अंश :  
 
सवाल : आप कहां से हैं और आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है? आपकी शिक्षा संबंधी जानकारी दीजिए?
जवाब : मैं पुणे से हूं और मेरे पूर्वज भी यहीं के थे. मेरे पिताजी रेडियो इंजीनियर थे और फिलिप्स कंपनी में कार्यरत थे. मेरी शादी को 33 साल हो गए, और मेरी दो बेटियां हैं. एक बेटी सीए है और कनाडा में रहती है, जबकि दूसरी पुणे में स्थित परसिस्टेंट कंपनी में कार्यरत है. मेरे पति गिरीश गोखले मैकेनिकल इंजीनियर हैं और हम अपने सासससुर, बेटी के साथ पुणे में रहते हैं. मैंने फर्ग्यूसन कॉलेज से सोशियोलॉजी में बीए किया, इसके बाद कर्वे इंस्टीट्यूट से मास्टर इन सोशल वर्क साइंसेज की डिग्री प्राप्त की. मेडिकल एंड साइकेट्रिस्ट में स्पेशलाइजेशन किया है. साथ ही मैंने 2002 में स्पेन की बार्सिलोना यूनिवर्सिटी से ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेशन और प्रोक्योरमेंट में एडवांस डिप्लोमा किया है. 2018 में अमेरिका के फिलाडेल्फिया स्थित ‌‘गिफ्ट ऑफ लाइफ डोनर प्रोग्राम' में मैंने फेलोशिप की है.
सवाल : यह जेडटीसीसी क्या है और आप इससे कैसे जुड़ीं? आपका कार्य क्या रहता है?
जवाब : जोनल ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेशन सेंटर (जेडटीसीसी) एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसे राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया गया है. यह राज्य के कई शहरों में है जैसे कि मुंबई, पुणे, नागपुर और औरंगाबाद. इसका उद्देश्य अंगदान और अंग-आवंटन से संबंधित कार्य करना है. यह अंगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने, मृतक दाताओं की पहचान करने, अंगों का सही तरीके से आवंटन करने और वेटिंग लिस्ट को बनाए रखने का काम करता है. मैं एमएसडब्ल्यू (मास्टर ऑफ सोशल वर्क) हूं और मेडिकल और साइकेट्रिस्ट के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर चुकी हू्‌ं‍. पहले मैंने ट्रांसप्लांट कोर्डिनेटर के रूप में रूबी हॉल क्लीनिक में काम किया. बाद में मुझे इस क्षेत्र में एडवांस्ड ट्रेनिंग के लिए फेलोशिप मिली, जिसके बाद मैंने जेडटीसीसी में 2012 से काम शुरू किया. वर्तमान में मैं पुणे जेडटीसीसी में सेंट्रल कोर्डिनेटर के रूप में कार्यरत हू्‌ं‍. मेरा मुख्य कार्य वेटिंग लिस्ट का प्रबंधन करना, कंसर्ट फोम से हॉस्पिटलों में ब्रेन डेड व्यक्तियों की पहचान करना, अंगों का आवंटन और वितरण करना है. हमें कंसेंट फॉर्म मिलता है तो वेटिंग लिस्ट और गाइडलाइन के मुताबिक ऑर्गन को डिस्ट्रीब्यूट करना और अलोकेशन करना और इससे जुड़े विभिन्न कार्य करना. पुलिस के साथ मिलकर ग्रीन कॉरिडोर के लिए कोर्डिनेशन करना उन्हें पूरी जानकारी देना. यह एक चौबीसों घंटे चलने वाला कार्य है, जिसमें हमें सही समय पर और सही तरीके से अंगों का आवंटन सुनिश्चित करना होता है.
 
 
सवाल : जेडटीसीसी की स्थापना कब हुई और यह सरकार के किस विभाग के अधीन आता है? जेडटीसीसी किन-किन शहरों एवं राज्यों में सक्रिय है?
 जवाब : राज्य में जेडटीसीसी की स्थापना सर्वप्रथम मुंबई में 1999 में हुई. यह राज्य सरकार के डायरेक्टर ऑफ हेल्थ सर्विसेज विभाग के अधीन आता है. जेडटीसीसी केवल महाराष्ट्र में कार्यरत है. राज्य में जेडटीसीसी चार शहरों में हैं इसमें मुंबई, पुणे, नागपुर और औरंगाबाद. इनके अंतर्गत अलग-अलग क्षेत्र आते हैं. पुणे जेडटीसीसी की स्थापना 2002 में हुई है और पुणे जेडटीसीसी में जो शहर आते हैं, उनमें सोलापुर, सातारा, सांगली, कराड, कोल्हापुर, पुणे शहर, अहमदनगर, लोणी, प्रवरानगर, नासिक, धुले और जलगांव शामिल हैं.
 
सवाल : नागरिकों में ऑर्गन डोनेशन को लेकर क्या बदलाव आपको देखने को मिले रहे हैं?
जवाब : 1997 में जब मैंने शहर का पहला ऑर्गन डोनेशन देखा, तो ब्रेन डेड का कांसेप्ट बिल्कुल नया था. उस समय मैं रूबी हॉल क्लीनिक में कार्यरत थी और हमें ब्रेन डेड डोनर के परिवारवालों को समझाना पड़ता था कि ऑर्गन डोनेट करना एक अच्छा कार्य है. हम उन्हें समझाते थे कि किडनी से दो लोगों का डायलिसिस बच सकता है और उन्हें नया जीवन मिल सकता है. ब्रेन डेड में, व्यक्ति का दिमाग काम करना बंद हो चुका होता है, लेकिन उसकी धड़कन चल रही होती है. जब पुलिस पोस्टमॉर्टम के लिए बॉडी भेजती थी, तो वह आश्चर्यचकित होते थे क्योंकि पेशेंट तो ‌‘जिंदा' दिखाई देता था, लेकिन असल में वह जीवित नहीं होता था, हालांकि उसकी सांसें चलती थीं. पहले, डॉक्टरों को पुलिस को भी यह समझाना पड़ता था कि ब्रेन डेड व्यक्ति की सांस और ब्लड प्रेशर तो दिखते थे, लेकिन उसकी मृत्यु हो चुकी होती है. साथ ही, रिश्तेदारों को भी यह समझाना पड़ता था कि यदि वेंटिलेटर हटा लिया जाए, तो उसकी सांस रुक जाएगी. लेकिन अब कई हॉस्पिटलों में मृत डोनर के रिश्तेदार खुद कहते हैं कि अगर ब्रेन डेड हो चुका है, तो हम ऑर्गन डोनेट कर सकते हैं, क्या? अब पुलिस भी जल्दी पंचनामा कर देती है. यह बदलाव टीम वर्क और सही समझ की वजह से आया है.
 
सवाल : जेडटीसीसी द्वारा ऑर्गन डोनेशन अवेयरनेस को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन सी योजनाएं या कार्यक्रम चलाए जाते हैं?
 जवाब : जिस मृत डोनर के परिवार डोनेशन करते हैं, उन्हें हम साल में 1 बार इकट्ठा करते हैं और बड़ा कार्यक्रम होता है, उन्हें सम्मानित करते हैं. हम नियमित तौर पर स्कूल और कॉलेजों में भी जाकर छात्रों को जागरूक करते हैं. साथ ही रोटरी क्लब जैसे बड़े संगठनों एवं निजी कंपनियों के माध्यम से भी जागरूकता फैलाते हैं. पिछले 10-12 साल में हमने जागरूकता के लिए कई शॉर्ट फिल्म भी तैयार की हैं, जिनमें कई बड़े एक्टरों ने कार्य किया है. पुणे में री-बर्थ नाम से एक एनजीओ है, जेडटीसीसी इनके साथ संयुक्त रूप से जागरूकता फैलाने का कार्य अलग-अलग कार्यक्रमों के माध्यम से करता है.
 
सवाल : जेडटीसीसी द्वारा पालन किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण प्रोटोकॉल और दिशा-निर्देश क्या हैं?
जवाब : जेडटीसीसी द्वारा पालन किए जाने वाले प्रमुख प्रोटोकॉल और दिशा-निर्देशों के तहत, वेटिंग लिस्ट को सही तरीके से बनाए रखना अनिवार्य है. ऑर्गन की प्राथमिकता और वितरण मरीज की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर सिस्टम द्वारा स्वतः तय किया जाता है और यह निर्णय हमारे हाथ में नहीं होता. ऑर्गन की प्राथमिकता तय करने के दिशा-निर्देश डायरेक्टर ऑफ हेल्थ सर्विस विभाग द्वारा प्रदान किए गए हैं, जो जेडटीसीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. इसके अलावा, राज्य, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर तीन प्रमुख संगठन हैं, सोटो (स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन), रोटो (रीजनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन), और नोटो ( नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑरगनाइजेशन), जो ऑर्गन ट्रांसप्लांट के संचालन और मार्गदर्शन के लिए जिम्मेदार हैं. पुणे जेडटीसीसी मुंबई वेस्ट रीजन के अंतर्गत आता है, जिसमें महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, दमन और दीव राज्य शामिल हैं. प्रत्येक हॉस्पिटल के डॉक्टर और कोऑर्डिनेटर के पास एक ऐप उपलब्ध है, जिससे वे किसी भी समय अपने मरीज की वेटिंग लिस्ट देख सकते हैं. इसके अलावा सोटो, रोटो के अंतर्गत आता है और हर राज्य के पास सोटो है.
 
सवाल : जेडटीसीसी कैसे और किन-किन तरीकों से अंगों को ट्रांसप्लांट सेंटर तक पहुंचाता है?
जवाब : जेडटीसीसी अंगों को ट्रांसप्लांट सेंटर तक पहुंचाने के लिए कई चरणों और तरीकों का पालन करता है. सबसे पहले, पेशेंट का रजिस्ट्रेशन किया जाता है और गाइडलाइन के तहत अंगों का वितरण और एलोकेशन किया जाता है. जब किसी हॉस्पिटल में मृत डोनर की पुष्टि होती है, तो उनकी मेडिकल जांच की जाती है, जैसे कि किडनी की यूरिया और क्रिएटिनिन लेवल की जांच, हार्ट का 2डी इको, आदि. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जो अंग दूसरे व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया जा रहा है, वह स्वस्थ है या नहीं. इसके बाद, अंगों को ट्रांसप्लांट सेंटर तक पहुंचाने के लिए विभिन्न तरीके अपनाए जाते हैं. उदाहरण के लिए, अगर डोनर पुणे में है और रिसीवर नासिक में है, तो अंग को ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से ट्रांसपोर्ट किया जाता है, जिसमें ट्रैफिक पुलिस का सहयोग लिया जाता है. इसके अतिरिक्त, रिसीवर के ब्लड टेस्ट की जांच भी की जाती है. अगर किसी अंग की आवश्यकता एक जेडटीसीसी में नहीं है, तो उसे दूसरे जेडटीसीसी में भेजा जाता है और यदि वहां भी आवश्यकता नहीं होती तो रोटो (रिजनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट) के द्वारा अंग को दूसरे राज्य में भेजा जाता है. अंत में, अगर अभी भी आवश्यकता नहीं होती तो अंग को नोटो को भेजा जाता है. अंगों के परिवहन के लिए एयरपोर्ट अथॉरिटी से भी समन्वय किया जाता है.
 
सवाल : जेडटीसीसी के योगदान से अभी तक कितने मरीजों को नया जीवनदान मिला है? वर्तमान में कितने मरीजों को विभिन्न अंगों की जरूरत है?
जवाब : पुणे जेडटीसीसी के योगदान से अब तक 1355 मरीजों को नया जीवनदान मिला है. वर्तमान में 2671 मरीज वेटिंग लिस्ट में हैं और जेडटीसीसी पुणे के 557 डिजीज डोनर हैं. सवाल : शरीर के कौन-कौन से अंगों का ट्रांसप्लांट हो सकता है? इसकी समय-सीमा कितनी है? जवाब : ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगों को दान किया जा सकता है, जैसे कि हार्ट, किडनी, लिवर, लंग, पैंक्रियाज, इंटेस्टाइन, फेफड़े. चूंकि ब्रेन डेड व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह से काम नहीं करता, लेकिन शरीर के अन्य अंग दूसरों के जीवन के लिए ट्रांसप्लांट के माध्यम से उपयोगी हो सकते ह्‌ैं‍. और अगर व्यक्ति की कार्डियक मृत्यु हुई है तो उसकी आंखें और त्वचा का दान भी दिया जा सकता है. साथ ही हम जिंदा हैं तो हम स्वेच्छा से 2 किडनी में से एक किडनी दान दे सकते हैं, लिवर का कुछ पोर्शन और यूटेरस का भी दान दे सकते हैं. ब्रेन डेड व्यक्ति वेंटिलेटर पर सांस लेते रहते हैं, फिर भी जल्द से जल्द ऑर्गन निकालना आवश्यक रहता है. शरीर के विभिन्न अंगों को शरीर से निकालने के बाद उनकी जीवनकाल सीमित होता है और यह अंगों के प्रकार पर निर्भर करता है. उदाहरण के तौर पर, हार्ट और लंग शरीर से निकालने के बाद 4 से 6 घंटे तक स्टोर किये जा सकते हैं, किडनी 12-24 घंटे तक स्टोर की जा सकती है, जबकि लिवर 6-8 घंटे तक सुरक्षित रह सकता है.
 
सवाल : क्या ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए कुछ विशिष्ट हॉस्पिटल्स को अपू्रर्व किया गया है? वे कौन से हैं?
जवाब : हां, ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए अनुमोदन प्राप्त करने हॉस्पिटल्स को एक निर्धारित प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. पहले, हॉस्पिटल को ट्रांसप्लांट करने की अनुमति के लिए आवेदन करना होता है. इसके बाद, डायरेक्टर ऑफ हेल्थ सर्विस की टीम हॉस्पिटल का निरीक्षण करती है, जिसमें यह देखा जाता है कि हॉस्पिटल में आवश्यक सुविधाएं जैसे आईसीयू, ब्लड बैंक, ऑपरेशन थिएटर, पर्याप्त बेड और अन्य जरूरी उपकरण मौजूद हैं या नहीं. हर पांच साल बाद, हॉस्पिटल को अपने लाइसेंस को रिन्यू भी करना होता है. शहर के प्रमुख हॉस्पिटल्स जैसे रूबी हॉल क्लीनिक, केईएम हॉस्पिटल, जहांगीर हॉस्पिटल, सहयाद्रि हॉस्पिटल, दीनानाथ मंगेशकर हॉस्पिटल, नोबल हॉस्पिटल, डीवाय पाटिल मेडिकल कॉलेज, बिरला हॉस्पिटल और अन्य कई बड़े हॉस्पिटल्स को ट्रांसप्लांट की अनुमति प्राप्त है.
सवाल : अधिकतर किस ऑर्गन का ट्रांसप्लांट ज्यादा होता है?
जवाब : किड़नी का ट्रांसप्लांट सबसे ज्यादा होता है. इसके बाद लिवर ट्रांसप्लांट ज्यादा होता है, फिर हार्ट और लंग, पैंक्रियाज, इंटेस्टाइन, फेफड़े. चूंकि ब्रेन डेड व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह से काम नहीं करता, लेकिन शरीर के अन्य अंग दूसरों के जीवन के लिए ट्रांसप्लांट के माध्यम से उपयोगी हो सकते ह्‌ैं‍. और अगर व्यक्ति की कार्डियक मृत्यु हुई है तो उसकी आंखें और त्वचा का दान भी दिया जा सकता है. साथ ही हम जिंदा हैं तो हम स्वेच्छा से 2 किडनी में से एक किडनी दान दे सकते हैं, लिवर का कुछ पोर्शन और यूटेरस का भी दान दे सकते हैं. ब्रेन डेड व्यक्ति वेंटिलेटर पर सांस लेते रहते हैं, फिर भी जल्द से जल्द ऑर्गन निकालना आवश्यक रहता है. शरीर के विभिन्न अंगों को शरीर से निकालने के बाद उनकी जीवनकाल सीमित होता है और यह अंगों के प्रकार पर निर्भर करता है. उदाहरण के तौर पर, हार्ट और लंग शरीर से निकालने के बाद 4 से 6 घंटे तक स्टोर किये जा सकते हैं, किडनी 12-24 घंटे तक स्टोर की जा सकती है, जबकि लिवर 6-8 घंटे तक सुरक्षित रह सकता है.
 
सवाल : ऑर्गन डोनर या रिसीवर को कौन-सी लीगल फॉर्मलिटीज पूरी करनी पड़ती है?
जवाब : ब्रेन डेड मामले में मृत डोनर के परिवार को कंसेंट फॉर्म साइन करना होता है और आधारकार्ड देना होता है, ताकि मृत व्यक्ति के साथ उनका संबंध साबित हो सके. रिसीवर का फॉर्म जेडटीसीसी द्वारा भरा जाता है, उसके बाद उन्हें वेटिंग लिस्ट में रखा जाता है. सवाल : ज्यादा से ज्यादा अंगदान हो, इसके लिए आप नागरिकों से क्या अपील करना चाहेंगी? जवाब : मृत्यु कब आ जाए, यह किसी को नहीं पता, लेकिन अगर किसी की मृत्यु ब्रेन डेड के कारण होती है, तो उसके परिवारवालों से मेरी अपील है कि वे इस कठिन समय में मानवता की मिसाल पेश करें और अंगदान के लिए सहमति दें. अंगदान से न सिर्फ एक व्यक्ति को नया जीवन मिल सकता है, बल्कि एक डोनर आठ लोगों की जान भी बचा सकता है. यह एक अमूल्य-दान है जो कितने परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बन सकता है.  
 
 
संपर्क :
जोनल ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेशन सेंटर (जेडटीसीसी)
पता : सेंटर इन केईएम हॉस्पिटल
ईमेल आईडी - ztccpunejrcor@gmail.com
वेबसाइट : https://www.ztccpune.org
मोबाइल नं - 9284807465
 
 
 
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